Motivational Concept: बाधाएं दृढ़प्रतिज्ञ मनुष्य की राह नहीं रोक सकतीं

Saturday, Apr 03, 2021 - 01:24 PM (IST)

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कई दशक पहले उत्तर प्रदेश के गोपामऊ नामक गांव में एक बालक पैदा हुआ। दुखद बात यह थी कि उसके दोनों हाथ कलाई के पास से जुड़े हुए थे जिसकी वजह से वह बालक अपने हाथों से कोई काम नहीं कर सकता था। उसके माता-पिता बालक की स्थिति से दुखी थे। थोड़ा बड़े होने पर बालक ने पढऩा चाहा। उसे हिंदी और संस्कृत का ज्ञान था जबकि पिता को फारसी आती थी।

उसने अपनी मां से हिंदी पढ़ी और रामचरितमानस की चौपाइयां गाने लगा। बालक लिखना चाहता था लेकिन हाथों की स्थिति के कारण लिखना संभव नहीं था।
फिर एक दिन बहुत सुंदर घटना घटी। हुआ यूं कि उसके पिता एक दिन कुछ लिख रहे थे। बालक वहीं बैठा उन्हें ध्यान से देख रहा था। तभी उसके पिता के एक मित्र आ गए। उनसे मिलनेे के लिए उसके पिता उठ कर बाहर चले गए। बालक ने किसी तरह हाथ की एक उंगली से कलम उठाकर उंगलियों के बीच में फंसा ली और लिखने लगा। उसके पिता ने एक पन्ने पर जो भी लिखा था, बालक ने वह हू-ब-हू उतार दिया।

पिता ने वापस आकर देखा तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने उसे एक विद्यालय में भर्ती करा दिया। वह बालक पी.एच.डी. करके  इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफैसर बना और बाद में विभागाध्यक्ष भी। आगे चलकर वह बालक हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान डा. रघुवंश के नाम से विख्यात हुआ। यह प्रेरक प्रसंग हमें सिखाता है कि बाधाएं दृढ़प्रतिज्ञ मनुष्य की राह नहीं रोक सकतीं।

Jyoti

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