किसी भी रूप में दर्शन देने आ सकते हैं भगवान, देखने वाली नज़रों की ज़रूरत

Tuesday, Sep 22, 2020 - 10:23 AM (IST)

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महर्षि रमण से कुछ भक्तों ने  पूछा, ‘‘क्या उन्हें भगवान के दर्शन हो  सकते हैं?’’ 

‘‘हां, क्यों नहीं हो सकते-परंतु भगवान को पहचानने वाली आंखें चाहिएं।’’ महर्षि रमण ने उन्हें बताया।

‘‘एक सप्ताह तक चलने वाले समारोह के अंतिम दिन भगवान आएंगे, उन्हें पहचानकर उनके दर्शन कर कृतकृत्य हो जाना।’’ महर्षि ने बताया।

भक्तों ने मंदिर को सजाया, सुंदर ढंग से भगवान का शृंगार किया तथा संकीर्तन शुरू कर दिया। महर्षि रमण भी समय-समय पर संकीर्तन में जाकर बैठ जाते।

सातवें दिन भंडारा करने का कार्यक्रम था। भगवान के भोग के लिए तरह-तरह के व्यंजन बनाए गए थे। मंदिर के सामने पेड़ के नीचे मैले कपड़े पहने एक कोढ़ी खड़ा हुआ था। वह एकटक देख रहा था कि शायद मुझे भी कोई प्रसाद देने आए।

एक व्यक्ति दया करके साग-पूरी से भरा एक दोना उसके लिए ले जाने लगा कि एक ब्राह्मण ने उसे लताड़ते हुए कहा, ‘‘यह प्रसाद भक्तजनों के लिए है, किसी कंगाल कोढ़ी के लिए नहीं बनाया गया है।’’ वह दोना वापस ले आया। महर्षि रमण यह दृश्य देख रहे थे। भंडारा सम्पन्न होने पर भक्तों ने मॢहष से पूछा, ‘‘आज सातवां दिन है किन्तु भगवान तो नहीं आए।’’

‘‘मंदिर के बाहर जो कोढ़ी खड़ा था वे ही तो भगवान थे। तुम्हारे चर्म चक्षुओं ने उन्हें कहां पहचाना? भंडारे के प्रसाद को बांटते समय भी तुम्हें इंसानों में अंतर नजर आता है।’’ महर्षि ने कहा।

भगवान के दर्शनों के इच्छुक लोगों का मुंह उतर गया।    —शिव कुमार गोयल

Jyoti

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