प्रेरक प्रसंग: जीवन में चाहते हैं खुशियां तो पहले बांटना सीखें

Monday, Sep 21, 2020 - 04:57 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
फुटपाथ पर एक छोटी-सी डलिया लिए एक बूढ़ी औरत बैठी थी। सुरेश ने देखा कि वह संतरे बेच रही थी। बाइक रोक कर सुरेश बुढिय़ा के पास गया और बोला, ‘‘अम्मा 1 किलो संतरे दे दो।’’ 

पैसे देकर सुरेश ने थैली में से एक संतरा निकाला और खाते हुए बोला, ‘‘अम्मा संतरे मीठे नहीं हैं।’’ और यह कहकर उसने एक संतरा उस बुढ़िया को दिया, वह संतरा चख कर बोली, ‘‘मीठा तो है बाबू।’’ 

सुरेश बिना कुछ बोले थैली उठाए चलता बना। अब यह रोज का क्रम हो गया।  

कई बार सुरेश की बीवी भी उसके साथ होती थी। वह यह सब देखकर बड़ा आश्चर्यचकित होती थी। एक दिन उसने सुरेश से कहा, ‘‘सुनो जी, ये सारे संतरे रोज इतने अच्छे और मीठे होते हैं फिर भी तुम क्यों रोज उस बेचारी के संतरों की बुराई करते हो।’’ 

सुरेश हल्की मुस्कान के साथ बोला, ‘‘उस बूढ़ी मां के सारे संतरे मीठे ही होते हैं लेकिन वह बेचारी कभी खुद उन संतरों को नहीं खाती। मैं तो बस ऐसा इसलिए करता हूं कि वह मां मेरे संतरों में से एक खा ले और उसका नुक्सान भी न हो।’’ 

उनके रोज का यही क्रम पास ही सब्जी बेचती सुनीता भी देखती थी। एक दिन वह बूढ़ी अम्मा से बोली, ‘‘यह लड़का रोज संतरा खरीदने में कितना चिकचिक करता है। रोज तुझे परेशान करता है फिर भी मैं देखती हूं कि तू उसको एक संतरा फालतू तौलती है, क्यों?’’ 

बूढ़ी बोली, ‘‘सुनीता वह लड़का मेरे संतरों की बुराई नहीं करता बल्कि मुझे रोज एक संतरा खिलाता है और उसको लगता है कि जैसे मुझे पता नहीं है लेकिन उसका प्यार देखकर खुद ही एक संतरा उसकी थैली में फालतू चला जाता है।’’

 

Jyoti

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