अपने स्वाभिमान को कभी न पहुंचने दें ठेस

Thursday, Sep 10, 2020 - 11:59 AM (IST)

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राजपूताना का चारण शीतल अकबर के दरबार में पहुंचा। उसने सिर की पगड़ी उतारी और अकबर बादशाह का अभिवादन किया। बादशाह ने जब उसे पगड़ी सहित न झुकते हुए देखा तो पूछ लिया, ‘‘चारण तो राज दरबारों में जाकर ठीक ढंग से नियमों का पालन करने की विधि जानते हैं। आज तुमने पगड़ी सिर से उतारकर, नंगे सिर झुककर क्या नियमों का उल्लंघन नहीं किया है?’’

चारण शीतल ने विनम्रता से कहा, ‘‘जहांपनाह, आप बिल्कुल ठीक कहते हैं कि चारण राजदरबार में पहुंचकर पगड़ी सहित सिर झुकाकर अभिवादन करते हैं किन्तु मैं विनम्रता के साथ आपको बताने पर मजबूर हूं कि मेरे सिर पर वह दिव्य पगड़ी थी जो एक बार महाराणा प्रताप ने प्रसन्न होकर मुझे भेंट की थी। जब महाराणा प्रताप ही आपके सामने कभी नतमस्तक नहीं हुए तो उनके द्वारा दी गई पगड़ी को आपके सामने झुकाने का मुझे क्या अधिकार है?’’

अकबर मेवाड़ क्षेत्र के एक साधारण चारण का स्वाभिमान देखकर चमत्कृत हो उठा।  —शिव कुमार गोयल 

Jyoti

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