क्या है सच्चा सेवा धर्म जानें यहां!

Wednesday, Jul 08, 2020 - 11:36 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
महर्षि अनमीषि धर्मशास्त्रों के प्रकांड विद्वान तथा त्यागी तपस्वी संत थे। वे जहां छात्रों को ज्ञान प्रदान करने में लगे रहते थे, वहीं उनका यह भी दृढ़ नियम था कि जब तक किसी अतिथि को भोजन नहीं करा देते तब तक स्वयं भोजन ग्रहण नहीं करते थे।  एक दिन दोपहर तक उनके आश्रम में कोई भोजन करने नहीं आया। तीसरे पहर तक वे भूखे अतिथि की प्रतीक्षा करते रहे। पति-पत्नी को लगने लगा कि अतिथि सेवा का यह क्रम आज टूट जाएगा। वे अत्यंत व्यग्र हो उठे। ऋषि दम्पति भूखे की खोज करने निकल पड़े। 

जंगल में उन्होंने एक वृक्ष के नीचे एक कुष्ठ रोगी को लेटे देखा। वह पीड़ा से कराह रहा था। उसके शरीर के घावों से खून-मवाद रिस रहा था। दोनों का हृदय उसे देखकर करुणा से भर उठा। 

ऋषि ने कुष्ठ रोगी से आश्रम चलने का अनुरोध किया। वृद्ध ने कहा, ‘‘महाराज, मैं चांडाल हूं। मैं आपके आश्रम में कैसे जा सकता हूं।’’ 


ऋषि अनमीषि ने विनम्र भाव से कहा, ‘‘भैया हम और तुम एक ही परमात्मा के अंश हैं। हम तुम्हें आश्रम में ले जाकर रोगमुक्त करेंगे। तुम हमेशा हमारे आश्रम में रहोगे।’’

वे वृद्ध रोगी को आश्रम में ले गए। उसके घावों को धोकर औषधि लगाई। बड़े स्नेह से भोजन कराया। 

भोजन के बाद रात की गहरी निद्रा में महर्षि को अनुभूति हुई कि भगवान उनसे कह रहे हैं, ‘‘अनमीषि, आज हम तुमसे पूर्ण संतुष्ट हैं। इस कुष्ठ रोगी की सेवा करके तुमने सच्चे मानव धर्म का पालन किया है। तुम्हारी साधना आज सफल हुई।’’ 

-शिव कुमार गोयल

Jyoti

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