तारीफ़ में न गवाएं अपनी कीमती समय

Wednesday, May 27, 2020 - 06:12 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
भगवान बुद्ध के अनुयायियों की सं या बढ़ती जा रही थी। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते समय उनके कुछ अनुयायी साथ में चलते थे, तो कुछ ज्ञान प्राप्त करके प्रसार के लिए रुक जाते या वापस हो जाते थे। उनके शिष्यों को उनसे वार्तालाप की पूरी छूट रहती थी। इसी छूट का लाभ उठाते हुए एक दिन एक शिष्य ने उनसे कहा,''हे महात्मा, आप इस धरती के सबसे बड़े उपदेशक हैं।"

बुद्ध पर शिष्य की प्रशंसा का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने उल्टे उससे पूछा,''क्या वह इस धरती के सभी उपदेशकों को जानते हैं?"

''नहीं, मैं नहीं जानता हूं।"

शिष्य ने उत्तर दिया। बुद्ध ने आगे पूछा,''क्या आप उनके उपदेशों को जानते हैं?"

इस बार भी शिष्य का उत्तर 'नहीं' था। इसे सुनकर महात्मा बुद्ध ने कहा,''उपदेशकों तथा उपदेशों के ज्ञान के अभाव में मुझे इस धरती का सबसे बड़ा उपदेशक कहना तो मूर्खता है।" 

शिष्य ने नतमस्तक होकर कहा,''मैंने तो आपकी प्रशंसा इसलिए की, क्योंकि आपके उपदेश मेरे लिए उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं।" 

इस पर बुद्ध ने उसे समझाया कि यदि उपदेशों से सहायता मिल रही है, तो उन्हें जीवन में उतारकर दूसरों के दुखों को दूर करो। प्रशंसा में व्यर्थ समय नष्ट मत करो। बुद्ध बोले,''संसार के दूसरे महात्माओं और उनके उपदेशों की बुराई मत करो। मानवता की सेवा का यह उनका अपना तरीका था। हम जो कहते हैं, उसका प्रभाव लोगों पर कभी पड़ता है तो कभी नहीं पड़ता है। मगर हम जो करते हैं, उसका प्रभाव लोगों पर हमारे कहने से कहीं अधिक पड़ता है।" 

इस प्रकार बुद्ध ने अपने अनुयायियों को ज्ञान दिया कि पहले वे दूसरों के प्रति दयालु बनें, सभी का स मान करें और उपदेशों की बजाय अपने कर्म से लोगों की मदद करें।

Jyoti

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