आप भी सीखिए बाबू राव पाटिल से कैसे दूसरों की मदद करने में मिलता है सुख

Sunday, May 24, 2020 - 05:37 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
सातवीं तक पढ़ाई करके पायोगोंडा पाटिल तहसील में क्लर्क बन गए। नौकरी करते हुए उन्हें लगा कि पढ़ाई में कमी रह गई, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देने का निश्चय किया। बड़े लड़के भाऊराव पाटिल को पढ़ने के लिए कोल्हापुर भेजा। वहीं जैन छात्रावास में उनके रहने का प्रबंध किया गया। अन्ना साहेब लाठे उस छात्रावास के वार्डन थे। कुछ दिनों बाद उन्होंने भाऊराव ज्ञाना पाटिल को छात्रावास से निकाल दिया क्योंकि उन्होंने अनुसूचित जाति के लिए बनाए गए एक होस्टल के उद्घाटन समारोह में भाग लिया था।

फिर भाऊराव के रहने का प्रबंध साहूजी महाराज के एक रिश्तेदार के यहां हो गया, लेकिन लाठे के आचरण से कोल्हापुर में उनके दुश्मन बढ़ गए। मई 1914 में इन्हीं दुश्मनों ने टाऊन हॉल के पास महारानीस विक्टोरिया की मूर्ति पर कालिख पोतकर लाठे को जेल भिजवाने के लिए भाऊराव से गवाही करानी चाही ? 

गवाही के लिए तैयार नहीं हुए तो उन लोगों ने भाऊराव को ही फंसा दिया। पुलिस ने भाऊराव को बहुत पीटा।साहूजी महाराज के हस्तक्षेप से भाऊराव छूट गए, लेकिन पढ़ाई भी छूट गई। फिर भाऊराव ने किले कक में सेल्समैन की नौकरी कर ली। नौकरी में एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते-जाते उन्होंने भुखमरी व पिछड़ेपन को नजदीक से देखा और जाना कि समस्याओं को जड़ अशिक्षा है। फिर उन्होंने स्कूल,कॉलेज और छात्रा वास खोलने का निश्चय किया । 1919 में सतारा में रयात शिक्षण संस्थान की स्थापना की।  

महात्मा गांधी के अनुयायी बनकर स्वाधीनता संग्राम में भी कूदे। जनता ने इन्हें कर्मवीर की उपाधि दी।जीवन के आखिरी पलों में पूना विश्वविद्यालय ने उन्हें डी-लिट की उपाधि दी। यह वही सपना था, जिसे कुछ लोगों ने छल करके तोड़ दिया था। अपना सपना टूटने की कसक मिटाने के लिए भाऊराव ने पूरा जीवन लोगों को शिक्षित करने में लगा दिया और आखिर में उनका भी सपना पूरा हुआ। 

Jyoti

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