ईश्वर को बाहर ढूंढने की कोशिश न करें
Friday, Jul 12, 2019 - 10:43 AM (IST)
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उपनिषद में बार-बार समझाया गया है कि जो सिस्टम ब्रह्मांड में कार्य कर रहा है वही मैकेनिज्म इस शरीर में भी है। विज्ञान ने भी मान लिया है कि क्रियाविधि सौर मंडल में कार्य करती है, वही इस शरीर के लिए भी है इसलिए ईश्वर को कहीं बाहर ढूंढने की कोशिश करना व्यर्थ है क्योंकि ब्रह्म आपके अंदर स्थित है, जिसे प्राण या आत्मा भी कहा गया है। आपके भीतर ब्रह्म की शक्ति है लेकिन आप भली-भांति उससे परिचित नहीं हैं।
इस कारण कभी आप अभिमान से ग्रसित होते हैं तो कभी आत्मविश्वास की कमी से जूझते हैं। इससे बचने का एक ही उपाय है कि जब आप सफलता का श्रेय लेंगे तो असफलता की जिम्मेदारी भी आपको ही लेनी पड़ेगी।
अब आपका सोचना भी सही है कि सफलता आपने अपनी सूझ-बूझ और परिश्रम से हासिल की है, फिर उसका श्रेय भी तो आपको ही मिलना चाहिए। क्या है, क्या नहीं-यही भ्रम आजवीन मनुष्य को सालता रहता है और इस भ्रम से उसे तभी निवृत्ति मिलती है जब वह बुद्धि की शरण में जाता है। अध्यात्म का अर्थ आत्मा से संबंधित नहीं है बल्कि आत्मा का जिस शरीर में निवास है, उससे है।
जैसे जल में नमक डाल दिया जाता है तो वह दिखाई नहीं देता लेकिन उसका अस्तित्व विद्यमान रहता है, उसी प्रकार आत्मा और शरीर का संबंध है। आत्मा दिखाई नहीं देती पर उसकी अनुभूति अंग-प्रत्यंग में शामिल होती है। यह अनुभूति बड़ी ही महान है। इसका नाम है उत्साह, आनंद और शांति।
पानी में घुले नमक को उबालने से पानी भाप बनकर उड़ता है फिर नमक रह जाता है उसी प्रकार जीवन में जब कष्ट के रूप में उबाल आता है तब ईश्वर की याद आती है जो आपके भीतर है।