कुछ इस तरह से मिली थी, महिलाओं के विकास को नई पहचान

Thursday, Mar 19, 2020 - 11:11 AM (IST)

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सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज में महिलाओं की भी एक रैजीमैंट बनाने का निश्चय किया। 22 अक्तूबर 1943 को नेताजी ने आजाद हिंद फौज की 'द रानी ऑफ झांसी रैजीमैंट का औपचारिक रूप से उद्घाटन किया। भारतीय महिला-योद्धाओं की यह लड़ाकू यूनिट पुरुषों और महिलाओं की समानता में नेताजी के विश्वास की पक्की अभिव्यक्ति तो थी ही, साथ ही उनके इस विश्वास की प्रतीक थी कि महिलाओं को जीवन के सभी पहलुओं और सभी कर्म-क्षेत्रों में समान और पूरे अवसर प्राप्त होने चाहिएं।
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द रानी ऑफ झांसी रैजीमैंट की कमान लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपी गई। इस रैजीमैंट में 1,000 महिला-सैनिक थीं। उन्हें विधिवत प्रशिक्षित किया गया। जो योग्य थीं, उन्हें युद्ध क्षेत्र में भेजा गया। शेष को नॄसग के काम में लगाया गया। सुभाष बोस इन महिला सैनिकों के माता-पिता के समान थे। वह अपनी महिला सैनिकों पर पूरा विश्वास करते थे और मानते थे कि महिला सैनिकों के होने से और उनके संपूर्ण व्यक्तत्वि को संवारने से देश शीघ्र ही स्वतंत्र होगा।

सुभाष अक्सर अपनी महिला सैनिकों से कहते थे, ''जब एक नारी शिक्षित होगी तो परिवार और समाज शिक्षित होगा और देश से कुप्रथाओं व अंधविश्वासों का अंत होगा। आजाद हिंद फौज में महिला रैजीमैंट का उद्देश्य यही है कि महिलाएं स्वावलंबी और मजबूत बनें। सुभाष चंद्र की ऐसी बातें महिला रैजीमैंट में निडरता और आत्मविश्वास का संचार करती थीं और इस तरह महिलाओं के विकास का काफिला बढ़ता जाता था। इस तरह से सुभाष चंद्र बोस ने देश की स्वतंत्रता के साथ ही महिलाओं के विकास को भी एक नई पहचान दी।

Lata

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