प्रशंसा नहीं, आशीर्वाद दें

Sunday, Jul 26, 2020 - 03:31 PM (IST)

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इलाहाबाद में महाकुंभ पर्व का आयोजन था। डॉ. संपूर्णानंद जी अमावस्या से एक दिन पूर्व श्रद्धाभावना के वशीभूत होकर प्रयाग पहुंचे तथा कुंभ नगरी के एक शिविर में ठहर गए। रात के समय उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ता  तथा अनन्य सहयोगी स्वाधीनता सेनानी राजबिहारी सिंह को सोते से जगाया तथा धीरे से बोले, ‘‘यहां सोने नहीं आए हैं। कपड़े पहनो और चलो मेरे साथ संत महात्माओं के दर्शन करने।’’ 

वे साधु-संतों के शिविरों में पहुंचे। श्रद्धापूर्वक संतों को नमन  किया। उनके चरणों में बैठ कर उपदेश सुने। एक संत ने शिष्यों से कहा, ‘‘अरे, बाबू जी तो स्वयं महान् विद्वान तथा सफेद वस्त्रों में संत हैं।’’

डाक्टर साहब ने ये शब्द सुने तो हाथ जोड़कर बोले, ‘‘महाराज हम राजनीति में काम करने वालों को यह प्रशंसा ही बिगाड़ती है। आप प्रशंसा करने की जगह हम गृहस्थियों को आशीर्वाद तथा सद्प्रेरणा देते रहें।’’


डॉ. संपूर्णानंद जी की विनम्रता को देखकर संतगण गद्गद् होकर उनके द्वारा राष्ट्र कल्याण की कामना करने लगे।

Jyoti

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