मित्र कम चुनें, लेकिन नेक चुनें

Wednesday, Jun 17, 2020 - 05:55 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एक लड़के के अनेक मित्र थे, जिसका उसे बहुत घमंड था। उसके पिता का एक ही मित्र था, लेकिन था सच्चा। एक दिन पिता ने बेटे से कहा कि तेरे बहुत सारे मित्र हैं, उनमें से आज रात तेरे सबसे अच्छे मित्र की परीक्षा लेते हैं। बेटा सहर्ष तैयार हो गया। रात को 2 बजे दोनों, बेटे के सबसे घनिष्ठ मित्र के घर पहुंचे। बेटे ने दरवाजा खटखटाया, दरवाजा नहीं खुला। बार-बार दरवाजा बजाने के बाद दोनों ने सुना कि अंदर से बेटे का मित्र अपनी माताजी से कह रहा था कि मां कह दे, मैं घर पर नहीं हूं। 

यह सुनकर बेटा उदास हो गया। अत: निराश होकर दोनों घर लौट आए। फिर पिता ने कहा कि बेटे, आज तुझे मेरे मित्र से मिलवाता हूं। दोनों रात के 2 बजे पिता के मित्र के घर पहुंचे। पिता ने अपने मित्र को आवाज लगाई। उधर से जवाब आया कि ठहरना मित्र, दो मिनट में दरवाजा खोलता हूं।

जब दरवाजा खुला तो पिता के दोस्त के एक हाथ में रुपए की थैली और दूसरे हाथ में तलवार थी। पिता ने पूछा, यह क्या है मित्र। तब मित्र बोला, अगर मेरे मित्र ने दो बजे रात को मेरा दरवाजा खटखटाया है तो जरूर वह मुसीबत में होगा और अक्सर मुसीबत दो प्रकार की होती है या तो रुपए-पैसे की या किसी से विवाद हो गया हो। अगर तुम्हें रुपए की जरूरत हो तो यह रुपए की थैली ले जाओ और किसी से झगड़ा हो गया हो तो यह तलवार लेकर मैं तुम्हारे साथ चलता हूं। तब पिता की आंखें भर आईं और उन्होंने अपने मित्र से कहा कि मित्र मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है। मैं तो बस मेरे बेटे को मित्रता की परिभाषा समझा रहा था।

शिक्षा-
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हम ऐसे मित्र न चुनें जो खुदगर्ज हो और आपके काम पड़ने पर बहाने बनाने लगे। मित्र कम चुनें, लेकिन नेक चुनें। वक्त पडऩे पर ही मित्रता की परख हो पाती है।

Jyoti

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