सेवक हो या मालिक, मदद करने से कभी पीछे न हटें

Friday, May 22, 2020 - 05:01 PM (IST)

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पंजाब के राय साहब लालचंद एक नेक और ईमानदार समाज सुधारक थे। एक बार उन्हें पता चला कि देहरादून के प्रसिद्ध कन्या गुरुकुल में छात्राओं के बौद्धिक विकास के लिए कई तरह के आयोजन किए जाते हैं। उन्होंने सोचा कि क्यों न वह अपनी पुस्तकों का भंडार गुरुकुल को सौंप दें, इससे कन्याओं का भला होगा। उन्होंने गुरुकुल के प्रमुख को पुस्तकें ले जाने के संदर्भ में एक पत्र लिखा। पत्र पढ़कर गुरुकुल के प्रमुख ने स्वयं राय साहब के पास जाने का निश्चय किया।

राय साहब के घर पहुंच कर उन्होंने दो-तीन बार दरवाजा खटखटाया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने दरवाजे को हाथ लगाया तो वह खुल गया। अंदर उन्होंने देखा कि एक वृद्ध बीमार व्यक्ति पलंग पर लेटा हुआ है और दूसरा वृद्ध उनके पैर दबा रहा है। गुरुकुल प्रमुख ने वृद्ध सेवक से पूछा,''राय साहब सो रहे हैं क्या?"

पैर दबाने वाला व्यक्ति बोला,''कहिए, क्या बात है" गुरुकुल प्रमुख बोले, ''राय साहब ने हमें पत्र लिखा है। मैं गुरुकुल का प्रमुख हूं।"

प्रमुख का परिचय जानकर वृद्ध बोले,''आइए, मैं ही लालचंद हूं।"

वृद्ध सेवक जैसे लगने वाले व्यक्ति का परिचय जानकर गुरुकुल प्रमुख दंग रह गए। वह हैरानी से बोले,''जिनके आप पैर दबा रहे थे, वह कौन हैं?"

राय साहब बोले,''वह मेरा सेवक है। बेचारा दो दिनों से बीमार है।"

यह जानकर चौंकते हुए गुरुकुल प्रमुख बोले,''अरे, तो आप अपने सेवक के पैर दबा रहे थे।"

राय साहब बोले,''तो क्या हुआ? वह पिछले 41 वर्षों से मेरे साथ है। आज अस्वस्थ है, तो क्या मैं एक दिन भी उसकी सेवा नहीं कर सकता? सेवक हो या मालिक, लेकिन है तो मनुष्य ही। बुरे वक्त में मैं उसे कैसे छोड़ दूं?"

यह सुनकर गुरुकुल प्रमुख उनके प्रति नतमस्तक हो गए।

Jyoti

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