सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिए अपने आप में पैदा करें ये गुण

Wednesday, Oct 02, 2019 - 04:27 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
भूचाल आने पर गांव से भागने वालों में सबसे आगे पोटली सिर पर लादे 'बचाओ, बचाओ’ चिल्लाती एक बुढ़िया थी। पता चला कि वही बुढ़िया रोज मंदिर में माथा टेकते समय मिन्नतें करती थी, ''हे प्रभु, मुझे इस दुनिया से उठा लो।''

प्राण बचाने की खातिर लोगों ने ठिकाने और धर्म तक बदल डाले। आत्महत्या करने वाला जीवन से नहीं बल्कि उस पीड़ा, शर्म, तड़प या तिरस्कार से निजात चाहता है जो उसे न मरने देती है, न जीने देती है। यह नहीं कि नैराश्य, बेबसी और कुछ न सूझने की स्थिति संयत, विवेकशील व्यक्ति के जीवन में नहीं आती, नौबत यहां तक आ सकती है कि प्राण त्यागना ही उसे एकमात्र विकल्प दिखता है।

विरले ही ऐसे होंगे जिन्होंने कभी आत्महत्या का प्रयास नहीं किया या गम्भीरता से ऐसा नहीं सोचा। मन प्रकृति की ऐसी अबूझ अस्मिता है जिसकी कार्यप्रणाली का सही आकलन धर्मग्रंथ, विज्ञान या तर्क से सम्भव नहीं। बाह्य या आंतरिक परिस्थितिवश कब, कौन-सा विचार किसी के दिलो-दिमाग पर हावी हो जाएगा, नहीं कहा जा सकता।

वर्तमान क्षण कितना भी पीड़ादायक हो, सरकना इसकी नियति है इसलिए सुखी वह रहेगा जो धैर्य बरतेगा। संकट और अड़चनें प्रभु उसके मार्ग में बिखेरते हैं जिन्हें वह बुलंदियों तक पहुंचाने के लिए उपयुक्त मानते हैं ताकि इनसे जूझ कर वह आधिकारिक परिष्कृत हो सके। अतीत की प्रत्येक विफलता में सफलता के बीज होते हैं। मशाल थामे आगे चलते हुए दूसरों का मार्ग रोशन करने वाले व्यक्ति के अतीत का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि उसका अतीत निर्बाध, सीधा-सपाट नहीं रहा। विकट समस्या के समक्ष घुटने टेकना सहज है, ज्यादातर व्यक्ति यही करते हैं। उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त रहने के लिए अतीत में जो चूक हुई उसे समझ कर उन्हें न दोहराने का संकल्प लेना होगा।
 

Jyoti

Advertising