क्या है सच्ची भावना, जानें इस प्रेरणात्मक प्रसंग से

Saturday, Jun 27, 2020 - 10:49 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
आखेट की खोज में भटकता शवर नील पर्वत की गुफा में जा पहुंचा। वहां पर भगवान नीलमाधव की मूर्ति के दर्शन करते ही शवर के हृदय में भक्ति-भावना का स्तोत्र उमड़ पड़ा। वह हिंसा छोड़ कर उपासना में संलग्न हो गया। उन्हीं दिनों मालवराज इंद्र प्रद्युम्न किसी तीर्थ में मंदिर बनवाना चाहते थे। उन्होंने स्थान की खोज हेतु अपने मंत्री विद्यापति को भेजा।

विद्यापति ने वापस जाकर राजा को नील पर्वत पर शवर द्वारा पूजित भगवान नीलमाधव की मूर्ति की सूचना दी। विद्यापति राजा इंद्र प्रद्युम्न को उक्त गुफा के पास लेकर आए, किंतु उनके वहां पहुंचने पर मूर्ति अदृश्य हो गई। यह देखकर राजा को क्रोध आया। उन्हें क्रोधित होते हुए देखकर विद्यापति बोले, ‘‘राजन! आप यहां क्या भावना करते हुए आए हैं?’’

थोड़ा शांत होने पर राजा ने उत्तर दिया, ‘‘मेरे मन में यह भाव था कि इस शवर को यहां से हटाकर एक भव्य मंदिर की स्थापना करूं।’’  विद्यापति बोले, ‘‘राजन! भगवान भव्यता के नहीं, भक्ति के भूखे हैं, तभी वे अयांचित शवर को तो दर्शन देते हैं। पर आपके समक्ष अंर्तध्यान हो गए हैं,  समदर्शी भगवान हृदय की भावना मात्र ही देखते हैं।’’

राजा ने अपनी भूल सुधारी, भगवान से क्षमा-याचना की और शवर को पूर्ण सम्मान देते हुए उस स्थान पर जगन्नाथ जी के मंदिर की स्थापना करवाई जो आज प्रभु की साक्षात उपस्थिति के रूप में प्रसिद्ध है।

Jyoti

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