...तो भगवान से मांगने की ज़रूरत नहीं रहेगी

Tuesday, Oct 22, 2019 - 09:44 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
आदिकाल से एक प्रश्न घूम रहा है- मैं कौन हूं? यहां क्यों आया हूं? मेरी जिंदगी का मकसद क्या है? या तो आपने यह प्रश्न आपने आप से पूछ लिया है और समय-समय पर पूछते रहते हो या फिर आगे पूछोगे। ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई यह सवाल पूछे बिना रह जाए। जब तक वह समझेगा नहीं कि उसके हृदय की प्यास क्या है, तब तक कैसे आगे चल पाएगा?

आपने मांगना तो सीख लिया। भगवान से मांगते रहते हो। जो वह तुम्हें पहले ही दे चुका है उसका तो सेवन करते नहीं, मांगने का सिलसिला बनाए हुए हो। यह आपकी सबसे बड़ी कमी है। उसके आशीर्वाद को आप पहचानते नहीं, उसका सेवन करना जानते नहीं तो आशीर्वाद अगर मिल भी गया तो आप कैसे जानोगे कि क्या आशीर्वाद मिला है? सच्चाई यह है कि उसके दिए आशीर्वाद को समझ जाओ, उसका सेवन करना सीख जाओ तो आपको उससे कुछ भी मांगने की ज़रूरत नहीं रह जाएगी।

मनुष्य शरीर मोक्ष का दरवाज़ा है। यह साधन है। लोग कहते हैं कि इसका मतलब है क्या हम सारी घर-गृहस्थी को छोड़ दें? नहीं। घर-गृहस्थी को छोड़ने की ज़रूरत नहीं है। आपकी जो भी जिम्मेदारियां हैं, उन्हें अच्छी तरह से निभाएं परन्तु एक और जो आपकी जिम्मेदारी है-अपने अंदर बैठे भगवान का अनुभव करने की, इस जिम्मेदारी को मत भूल जाओ। कुछ भी आप अपनी जिंदगी में करते हो करो परन्तु ये तीनों चीजें जरूर करो।

एक, ज्ञान को इकट्ठा करना तो ठीक है परन्तु अगर विवेक नहीं है तो वह ज्ञान क्या करेगा? अर्थात ज्ञान ले भी लिया परन्तु उसका अभ्यास नहीं किया तो वह कुछ नहीं करेगा। दूसरा, ज्ञान के साथ विवेक भी इकट्ठा करो परन्तु बिना सत्संग विवेक न होय। तीसरी चीज-अपने आपको समझो, यानि अपने आपको सुनो। उसके साथ राजी होना नहीं, सिर्फ सुनना। कोई भी हो उसको समझना। उसके साथ सहमत होना नहीं। अगर ये तीनों चीजें आप कर पाए तो आप अच्छे मनुष्य भी बन सकते हो।

Jyoti

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