स्वर्ग से भी बढ़कर हैं मां और मातृभूमि

Tuesday, May 05, 2020 - 05:58 PM (IST)

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राहुल की प्रसन्नता का आज ठिकाना नहीं था। बात ही ऐसी थी। काफी हाथ- पैर मारने के पश्चात आखिर एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में उसे नौकरी मिल ही गई थी जिसके चलते चार महीने की ट्रेनिंग के पश्चात उसे अमेरिका जाने का मौका मिलने वाला था। लेकिन मां तो मां ठहरी। राहुल की बात सुनकर कुछ उदास हो गई। भला इकलौते बेटे को अपनी आंखों से दूर कैसे करती। लेकिन बच्चों की जिद के आगे भला किसकी चलती है। दो महीने तो शॉपिंग में ही बीत गए। आखिर वह दिन भी आ ही गया, जब उसे फ्लाइट लेनी थी। मां का रो-रो कर बुरा हाल था। पिता थे तो अंदर से उदास परंतु अपनी उदासी शब्दों में व्यक्त नहीं कर रहे थे। मां तो जाते-जाते भी उसे रोकना चाहती थी लेकिन सन का कहना था कि ऐसे अवसर को गंवाना मूर्खता है। उसने कहा कि वह कुछ साल बाद मां-बाप को भी वहीं बुला लेगा। आखिर भारत में रखा ही क्या है। 

विदेश में बसने का स्वप्न तो कितने ही लेते हैं किंतु सब उस जैसे भाग्यशाली नहीं होते। अभी उसे वहां गए कुछ महीने ही हुए थे कि कोरोना वायरस ने अपने पांव पसारने शुरू कर दिए। अब उसे देश की चिंता सताने लगी। दिन-रात बस इसी सोच में लगा रहता कि किसी तरह घर पर आए। यदि वह बीमार पड़ गया तो विदेश में कौन उसकी मदद करेगा? इसी चिंता में सोच-सोच कर वह परेशान रहने लगा और सोचने लगा कि यदि आज वह अपने देश में होता तो उसकी यह दशा न होती। नि :संदेह, मां और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं इसलिए विदेश में अपनी जननी और जन्मभूमि दोनों की ही याद आती है। अब उसने निश्चय कर लिया कि यदि वह यहां से सुरक्षित निकल गया तो फिर अपने देश में ही जाकर नौकरी करेगा क्योंकि अपने देश जैसा सुख कहीं नहीं। -डा. सुनील बहल

 

Jyoti

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