नजर नहीं आया रमजान का चांद

Saturday, May 27, 2017 - 08:46 AM (IST)

रमजान मास के रोजे आध्यात्मिक और नैतिक प्रशिक्षण का सर्वोत्तम साधन हैं। इन रोजों के द्वारा रोजोदार में ईश भय पैदा होता है, संयम आता है, चरित्र सुधार होता है तथा मनोकामनाओं पर काबू पाने की शक्ति पैदा होती है। पवित्र रमजान का चांद देशभर में कहीं भी नजर न आने से अब रोजा 28 मई से शुरू होगा। यह घोषणा आज पंजाब के मुसलमानों के धार्मिक केंद्र जामा मस्जिद लुधियाना के शाही इमाम और रुयत-ए-हिलाल कमेटी पंजाब (चांद देखने वाली कमेटी) के हबीब रहमानी सानी लुधियानवी और रुयत-ए-हिलाल कमेटी हरियाणा, इमारते शरिया बिहार ने आज चांद नजर न आने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि अब रमजान का पहला रोजा 28 मई से होगा।


अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल) ने रमजान के महीने को ‘शहरुल मुआसात’ कहा है जिसका अर्थ है- सहानुभूति, गमख्वारी और सहनशीलता का महीना अर्थात यह महीना इंसानों के साथ सहानुभूति, हमदर्दी और गमख्वारी का महीना है।


कुरआन में रोजा के लिए ‘सौम’ शब्द आया है जिसका अर्थ है-रुकना, अर्थात अपनी मनोकामनाओं पर नियंत्रण रखना। अन्य इबादतों में कुछ न कुछ करना पड़ता है मगर रोजो में रुकना पड़ता है अर्थात रोजो की हालत में खाने-पीने से तथा संभोग से रुकना यानी बचना पड़ता है। 

 
चूंकि रमजान हमदर्दी का महीना है, अत: इस महीने में एक-दूसरे की तंगियों, महरूमियों, परेशानियों और विपत्तियों में शामिल होकर उनकी सहायता की जाती है। यहां इसका अर्थ यह नहीं है कि केवल इसी महीने में उक्त पुण्य कार्य किए जाएं बल्कि यह तो एक प्रशिक्षण मास है। इस पूरे महीने में इंसान चरित्र निर्माण का प्रशिक्षण प्राप्त करके शेष ग्यारह महीनों में भी भलाई-कल्याण के कार्यों में लगा रहता है। इंसान का हर अच्छे कर्म का फल दस गुना से सात सौ गुना तक बढ़ाया जाता है परन्तु रोजा अल्लाह के लिए है और वही उसका बदला जिस तरह चाहेगा, देगा।

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