ये कथा सुनने से मिलेगा वाजपेय यज्ञ का पुण्य, पितरों का होगा नरक से छुटकारा

Tuesday, Nov 28, 2017 - 12:33 PM (IST)

भगवान को एकादशी तिथि परम प्रिय है इसी कारण जो मनुष्य किसी भी मास में आने वाली कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करता है उस पर प्रभु की सदा ही अपार कृपा बनी रहती है। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से जहां सभी पापों का नाश हो जाता है वहीं यह व्रत हर प्रकार के पातकों को भी मिटाने वाला है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता के ज्ञान का उपदेश दिया था और अर्जुन ने उस उपदेश के अनुसार ही अपने मन से मोह का त्याग करके कर्म करने की प्रेरणा ली थी। इस दिन यह एकादशी गीता जयंती के रुप में भी मनाई जाती है।


व्रत का पुण्यफल- मोक्षदा एकादशी के व्रत से जहां मनुष्य की सभी कामनाओं की पूर्ति हो जाती है वहीं इस व्रत के पुण्यफल के प्रभाव से पितरों का भी उद्घार हो जाता है। जो मनुष्य संसार के आवागमन के चक्कर से मुक्त होना चाहते हैं उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए क्योंकि यह व्रत मनुष्य के लिए चिंतामणि के समान है। व्रत की कथा सुनने मात्र से भी वाजपेय यज्ञ के समान पुण्यफल प्राप्त होता है।


व्रत कथा- पदमपुराण के अनुसार वैष्णवों से विभूषित चम्पक नगर में वैखानस नाम का एक राजा राज्य करता था। जो प्रजा का पालन अपनी संतान की भांति करता था। एक दिन उसने स्वपन में अपने पिता एवं पितरों को नीच योनि में पड़े देखा जो बहुत दुखी हो रहे थे और राजा से स्वयं को नरक से निकालने के लिए रो-रो कर गुहार लगा रहे थे। 


राजा ने अपना यह स्वप्न जब ब्राह्मणों को सुनाया तो उन्होंने राजा को पर्वत मुनि के पास उपाय पूछने के लिए भेज दिया। राजा ने पर्वत मुनि को सारा स्वप्न सुनाया तो उन्होंने राजा को मोक्षदा एकादशी का व्रत करके उसका पुण्यफल अपने पितरों को देने के लिए कहा। 


राजा ने विधिवत एकादशी का व्रत किया तथा व्रत का पुण्यफल अपने नीच योनि में पड़े पितरों को दे दिया। व्रत के पुण्यफल के प्रभाव से आकाश से पुष्प वर्षा हुई तथा पितरों का नरक से छुटकारा हो गया। राजा को अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ तथा वह लम्बे समय तक राज्य करता हुआ प्रभु के परमधाम को प्राप्त हुआ।

वीना जोशी
veenajoshi23@gmail.com

Advertising