मोहिनी एकादशी: महापापों का होगा नाश

Wednesday, Apr 25, 2018 - 02:09 PM (IST)

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में मोहिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं जहां पूर्ण हो जाती हैं, वहीं प्रभु कृपा प्राप्त होने से मनुष्य के जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहता। इस व्रत को करने से मनुष्य संसार के सभी सुखों को भोगता हुआ अंत में प्रभु के परमधाम को प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान को एकादशी तिथि अति प्रिय है तथा नदियों में गंगा को जो स्थान प्राप्त है वही स्थान व्रतों में एकादशी को प्राप्त है। कहा जाता है कि जिसकी कोई कामना किसी भी कारणवश पूरी न होती हो वह एकादशी का व्रत सच्चे मन से करे तो उसकी कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती। इसके लिए व्यक्ति को दशमी पर व्रत करने का संकल्प करना चाहिए। एकादशी में व्रत तथा द्वादशी को प्रात: उठकर मां लक्ष्मी जी का पूजन करने मात्र से ही मनुष्य सभी बंधनों से मुक्त एवं सभी सुखों से युक्त हो जाता है। इस बार मोहिनी एकादशी व्रत 26 अप्रैल को है तथा हर जीव को इस व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए।


किसका कैसे करें पूजन 
नवरात्रों में जैसे मां दुर्गा के विभिन्न 9 रूपों का पूजन एवं व्रत किया जाता है, वैसे ही शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक मास में आने वाली दो-दो एकादशियों में भगवान के विभिन्न रूपों का पूजन करने का विधान है। मोहिनी एकादशी को भगवान के पुरषोत्तम रूप यानि प्रभु श्री राम जी के पूजन का विधान है। इस दिन सूर्य निकलने से पूर्व उठकर अपनी नित्य स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान की प्रतिमा को स्नान करवाकर उन्हें ऊंचे आसन पर विराजमान करें, धूप-दीप, नेवैद्य व पुष्पादि से उनका पूजन करें। 


मौसम के अनुसार आम तथा अन्य मीठे फलों का प्रभु को भोग लगाएं। ब्राह्मणों को यथासम्भव भोजन करवाएं तथा उन्हें फल आदि के साथ दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। स्वयं किसी प्रकार का अन्न ग्रहण न करें बल्कि फलाहार करें। रात को प्रभु नाम का संकीर्तन करते हुए धरती पर शयन करना चाहिए तथा अपना सारा दिन भी प्रभु नाम सिमरण में बिताना ही उत्तम कर्म है। अगले दिन यानि द्वादशी (27अप्रैल) को स्नान आदि करके ब्राह्मणों को दक्षिणा सहित दान आदि देकर स्वयं भोजन करें तो प्रभु अति प्रसन्न होते हैं और जीव को सभी प्रकार की सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। 


यह व्रत क्योंकि वीरवार को है इसलिए पीले रंग का विशेष महत्व है, भगवान को भी पीत वर्ण अति प्रिय है इसलिए पीले रंग के वस्त्र पहनकर भगवान का पूजन करना चाहिए तथा पीले रंग के फूल भगवान को अर्पण करें और पीले फलों का ही भगवान को भोग लगाना चाहिए। इसके अतिरिक्त गाय को चारा खिलाने का भी विशेष महत्व है।  


क्या है पुण्यफल- 
वैसे तो इस नश्वर संसार में जो मनुष्य शास्त्रों के अनुसार जीवन में आचरण करते हुए सत्कर्म करते हैं और अपना अधिक से अधिक समय प्रभु नाम संकीर्तन में बिताते हुए किसी भी तरह के व्रत आदि के नियमों का पालन करते हैं। उन पर प्रभु सदा प्रसन्न रहते हैं परंतु एकादशी तिथि प्रभु को अति प्रिय होने के कारण अति पुण्य फलदायिनी है। पदमपुराण के अनुसार इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। यह एकादशी व्रत जीव के सभी प्रकार के कष्टों, दुखों, संतापों एवं पापों का नाश करने वाली है। किसी प्रकार के मानसिक तनाव को दूर करके मन में सुख शांति प्रदान करने के लिए यह एकादशी व्रत अमोध अस्त्र है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत की महिमा को पढ़ने तथा सुुनने वाले को भी एक हजार गोदान करने के बराबर फल मिलता है। मोहजाल तथा सभी प्रकार के पापों एवं पातकों से छुटकारा पाने के लिए यह व्रत किसी अमृत से कम नहीं है। यह व्रत जीव को उसके निंदित कर्मों के पाप से भी मुक्ति प्रदान करता है तथा इसके प्रभाव से मेरु पर्वत के समान किए गए महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। 


वीना जोशी
veenajoshi23@gmail.com

Niyati Bhandari

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