Mohini Ekadashi 2021: इस विधि से करें व्रत, भगवान विष्णु होंगे प्रसन्न

Saturday, May 22, 2021 - 07:31 AM (IST)

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Mohini Ekadashi 2021: मोहिनी एकादशी का आरंभ आज यानी 22 मई की सुबह 9.30 बजे होगा। जो कल सुबह यानी 23 मई करीब 6.40 तक रहेगी। अत: सूर्योदय की तिथि 23 मई को व्रत रखना ही उत्तम रहेगा। इस एकादशी का व्रत रखने वाले को अपना मन साफ रखना चाहिए। प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके बाद शुद्घ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा तस्वीर के सामने घी का दीपक जलाएं और तुलसी, फल, तिल सहित भगवान की पूजा करें। व्रत रखने वाले को स्वयं तुलसी पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए। किसी के प्रति मन में द्वेष की भावना न लाएं और न ही किसी की निंदा करें। व्रत रखने वाले को पूरे दिन निराहार रहना चाहिए। शाम में पूजा के बाद चाहें तो फलाहार कर सकते हैं। एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है। संभव हो तो रात में जागकर भगवान का भजन कीर्तन करें। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।


Mohini Ekadashi vrat Vidhi: जो व्यक्ति मोहिनी एकादशी का व्रत कर रहा हो, उसे एक दिन पूर्व अर्थात दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। व्रत के दिन एकादशी तिथि में व्रती को सुबह सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और नित्य कर्म कर शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए। स्नान के लिए किसी पवित्र नदी या सरोवर का जल मिलना श्रेष्ठ होता है। अगर यह संभव न हों, तो घर में ही जल से स्नान करना चाहिए।


Mohini Ekadashi Puja Vidhi: स्नान करने के लिए कुश और तिल के लेप का प्रयोग करना चाहिए। स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। इस दिन भगवान श्री विष्णु के साथ-साथ भगवान श्री राम की पूजा भी की जाती है। व्रत का संकल्प लेने के बाद ही इस व्रत को शुरु किया जाता है। संकल्प लेने के लिए इन दोनों देवों के समक्ष संकल्प लिया जाता है। देवों का पूजन करने के लिए कलश की स्थापना कर, उसके ऊपर लाल रंग का वस्त्र बांध कर पहले कलश का पूजन किया जाता है।


इसके बाद उसके ऊपर भगवान की तस्वीर या प्रतिमा रखें तत्पश्चात भगवान की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध कर उत्तम वस्त्र पहनाना चाहिए। फिर धूप, दीप से आरती उतारनी चाहिए और मीठे फलों का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद प्रसाद वितरित कर ब्राह्मणों को भोजन तथा दान-दक्षिणा देनी चाहिए। रात्रि में भगवान का कीर्तन करते हुए मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।

Niyati Bhandari

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