Salary मिलने पर सबसे पहले करें ये काम, बढ़ेगा धन का प्रवाह

Wednesday, Feb 08, 2023 - 10:04 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Methods To Increase Your Salary: लेना और देना मनुष्य जीवन की स्वाभाविक व्यवस्था है। व्यक्ति माता, पिता, मित्र, समाज, देश और विश्व के साथ ही उसके चारों ओर फैली प्रकृति से सदैव लेता ही रहता है- वायुमंडल, धरती, फल, फूल, जल अन्नादि। यही प्रक्रिया उसके जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है। जिस प्रकार लेते रहना व्यक्ति का स्वभाव है, उसी प्रकार देना उसका संस्कार है। सामान्यत: आचार्यों ने दान को एक प्रकार का व्यापार मान कर इसकी शाब्दिक व्याख्या करते हुए कहा है, ‘‘वह व्यापार, जिसमें किसी वस्तु पर से अपना अधिकार दूर होकर दूसरों पर हो जाए। यह व्यापार किसी भी वस्तु या पदार्थ का हो सकता है परंतु दान का प्रबंध प्रमुdaख रूप से धन से जोड़ दिया जाता है। समाज से प्राप्त सेवाओं अथवा सुविधाओं के बदले धन देना मनुष्य की विवशता होती है, इसे दान नहीं कहा जा सकता। वास्तविक दान में त्याग किए गए धन के बदले में कृतज्ञता प्राप्त करने की लालसा तक का कोई महत्व नहीं होता।"



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संसार के लगभग सभी धर्मों में दान को किसी न किसी प्रकार धर्म से अवश्य जोड़ा गया है। इस्लाम अपनी आय का चालीसवां भाग खैरात करने के पक्ष में है और इसे वहां जकात की संज्ञा देकर सच्चे मुसलमान के अनिवार्य कर्तव्यों में जोड़ दिया गया है। ईसाई धर्म में चर्च से संबंधित प्रत्येक पर परा में दान की अनिवार्यता सम्मिलित है। पारसी, यहूदी, ताओ आदि विश्व के महत्वपूर्ण धर्मों की भी लगभग यही स्थिति है, लेकिन सामान्यत: गृहस्थों तक में दान को जिस प्रकार और जितने रूपों में बतलाया गया है, उसका अगर गहन विश्लेषण किया जाए तो भारतीय चिंतन के कई पक्ष सामने आते हैं।



दान जैसी सामान्य सी दिखने वाली व्यवस्था को भारतीय दर्शन में जिस प्रकार महिमा मंडित कर उच्च स्थान प्रदान किया गया है उसके पीछे न केवल एक गूढ़ चिंतन छिपा है, सामान्य मानव के कल्याण की एक स्पष्ट योजना भी सम्मिलित है। दान और धर्म को जीवन का उच्चतम मूल्य मानना चाहिए। अपने जीवन का प्रत्येक क्षण धर्ममय बनाएं। जिस मनुष्य के जीवन में धर्म नहीं है, उसका जीवन जीवन नहीं, वस्तुत: मृत्यु है।

अहंकार और राग द्वेष का त्याग, आत्मानुभूति, प्राणीमात्र के प्रति प्रेम, आत्मभाव के साथ मानव मात्र की नि:स्वार्थ सेवा यही सच्चे धर्म का सार है। मन से ही मानव की पहचान होती है, इसलिए हमें अपने तन और वस्त्रों को शुद्ध करने से अधिक महत्व अपने हृदय को शुद्ध करने पर देना चाहिए और हृदय शुद्ध होता है नियम से, प्रभु का ध्यान करने से, ईश्वर से प्रेम करने से।



अगर पुराणों की बात करें तो वहां दान से संबंधित अनेक उदाहरण मिलते हैं। हरिशचंद्र न केवल अपना संपूर्ण राज्य दान कर देते हैं बल्कि दक्षिणा की राशि चुकाने के लिए स्वयं चांडाल के यहां श्मशान में नौकरी करने लगते हैं। राजा बलि तो वामन रूपी विष्णु को तीनों लोकों का राज्य दान कर देते हैं और शेष आधे पग के लिए भूमि के रूप में स्वयं अपना शरीर प्रस्तुत करते हैं। कर्ण तो इंद्र को अपने कवच कुंडल दान कर स्वयं की मृत्यु का द्वार खोल देते हैं।

Niyati Bhandari

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