Mental Health Tips: हर दिल अजीज बनना है तो...
Wednesday, Feb 28, 2024 - 08:21 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Mental Health Tips: बचपन में स्कूल के टीचरों द्वारा हमें यह सिखाया जाता था कि ‘पेड़ जितना बड़ा होता जाता है, उतना जमीन की ओर झुकता है।’ इस उदाहरण से टीचर हमें ‘नम्रता’ के गुण के विषय में सिखाने की कोशिश करते परंतु हममें से चुनिंदा लोग ही ऐसे हैं कि जिन्हें माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के पश्चात भी प्राथमिक शिक्षा की क्लास में सिखाई हुई वह महत्वपूर्ण बात याद होगी। इसके पीछे का कारण है निष्ठुर दुनिया जिसमें हम सभी जी रहे हैं।
आज प्रतिद्वंद्विता के जिन हालातों के बीच हम जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उसमें चाहकर भी हम ‘विनम्र’ नहीं हो सकते हैं किन्तु इन सभी हालातों के बावजूद भी हकीकत तो यही रहेगी कि ‘जो झुकता है, वही सभी के दिलों को जीतता है।’
विनम्रता के बारे में हम सभी की अलग-अलग मान्यताएं होती हैं, मसलन कोई समझता है कि यह अति आवश्यक गुण है। कोई समझता है कि हमारे जीवन में इसकी कोई आवश्यकता नहीं, कोई कहता है कि वर्तमान परिवेश में जहां भ्रष्टाचार का बोलबाला है, वहां विनम्र होकर चलना असंभव कार्य है और कोई फिर कहता है कि विनम्रता तो कायरता की निशानी है परन्तु वास्तव में विनम्रता कायरता नहीं है, अपितु वह तो व्यक्ति को शांति, सहनशीलता, शक्ति और ऊर्जा प्रदान करती है इसलिए यदि हम मनुष्य विनम्रता से जीवन जीना सीख लें तो हमारी अनेक परेशानियां देखते ही देखते समाप्त हो जाएंगी।
स्मरण रहे ! कि ‘बिना नम्रता को धारण किए, आप कोई भी दूसरा गुण धारण नहीं कर पाएंगे’ क्योंकि विनम्र होकर ही हम पात्रता अर्जित कर सकते हैं। तभी तो विनम्रता को गुणों का राजा कहा जाता है।
विनम्रता का गुण सहयोग और एकता का वायुमंडल बनाता है जिससे हम बड़ी आसानी से अपनी आपसी दूरियों को मिटाकर सौहार्दपूर्ण व्यवहार कर सकते हैं। भारतीय संस्कृति में इसी विनम्रता को व्यक्त करने के लिए प्रणाम करने की परम्परा है एवं बड़ों के समक्ष झुक कर आशीर्वाद लेने की भी प्रथा है।
यह गुण हमें अहंकार और स्वप्रशंसा के रसातल में गिरने से बचाता है और भविष्य में आने वाली सभी धोकादायक संभावनाओं के प्रति हमें सतर्क करता है।
विनम्रता से पेश आने वाला व्यक्ति कभी महत्वाकांक्षी नहीं होता लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उसकी जिंदगी में कोई लक्ष्य नहीं होते। ऐसे व्यक्ति को किसी भी बात का भय नहीं सताता और न ही उसे जीवन में कुछ खोने का डर रहता है क्योंकि उसने ‘मैं’ और ‘मेरा’ जोकि मनुष्य पतन के सबसे मुख्य दो कारण है उस पर जीत हासिल की होती है अत: वह संसार के बीच रहते हुए भी उससे अल्पित रहता है।
उसके ऊपर दूसरों का ध्यान अपनी ओर खींचने का जुनून सवार नहीं होता इसलिए उसे मन की शांति बड़ी सहजता से मिलती है और ऐसी शांति इंसान के तन और मन की तंदुरुस्ती के लिए बहुत जरूरी है।