आत्मा को परमात्मा के साथ मिलाने का यही है एक मार्ग

Tuesday, Aug 27, 2019 - 10:12 AM (IST)

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परमात्मा से बिना प्रीति जोड़े, उसकी देहरी पर कदम रखे बिना जीवन भर सुख-ऐश्वर्य के चारों तरफ लगाए गए फेरे दुख के घेरे बन सकते हैं। प्रीति या अनुराग ही हमारे जीवन की आधारशिला का मौलिक तत्व है।

धन का अर्जन, परिवार का पालन-पोषण, पद के पीछे पागलपन का अपनी जगह अलग महत्व हो सकता है लेकिन जीवन से अनुराग के समक्ष ये गौण हैं। हमारा संपूर्ण जीवन प्रीति से ही स्फूर्तिमान है। प्रीति के अनेक आयाम हैं। प्रीति वह भी है जो भाई-बहन, पति-पत्नी और मित्रों के प्रति होती है। इसका दूसरा नाम प्रेम है। प्रीति की दूसरी श्रेणी है- श्रद्धा, जो माता-पिता और गुरु, पूज्यजनों और आदरणीय के प्रति होती है। प्रीति का ही एक और रूप है, अपनों से छोटों के प्रति अनुरक्ति रखना, जिसे स्नेह या वात्सल्य कहते हैं।

जब हम इन सभी प्रीति को निभाते हुए परिपक्वता की ओर बढ़ते हैं, तब चौथी प्रीति जिसे भक्ति कहते हैं, उत्पन्न होती है। यह भक्ति, प्रीति की पराकाष्ठा है। भक्ति परमात्मा के साथ अंत:करण से जोड़ने की प्रवृत्ति होती है। वैसे तो हम प्रेमवश संसार के हर जड़-चेतन पदार्थ के साथ जुड़े हैं किंतु दुनियादारी के रिश्तों से जुड़ना भक्ति नहीं है। जब हम चाहत से ऊपर उठ जाते हैं तो हमारी चेतना और चिंतन में परमात्मा की भक्ति साकार होने लगती है।

अगर हमारी जीवनशैली में उदारता एवं स्वभाव में मृदुता है तो हम परमात्मा से भक्ति के योग्य हैं। जब हृदय ऐसा भव्य हो जाता है तो उसे प्रभु भक्ति के लिए न किसी प्रेरणा की जरूरत होती है और न ही वह अवसर की प्रतीक्षा करता है।

हमारे मानवीय मन की विडम्बना है कि वह भक्ति में भी सांसारिक इच्छाओं का समावेश कर लेता है इसीलिए हमारी भक्ति परमात्मा तक नहीं पहुंच पाती। मानव जीवन रूपी पत्थर में परमात्मा की मूर्त छिपी है। इसे देखने के लिए स्वयं शिल्पकार बनना पड़ेगा।

Lata

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