राम राज्य की खुशहाली का कारण थे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम

Wednesday, May 05, 2021 - 06:55 PM (IST)

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हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता
कहहि सुनहि बहुविधि सब सन्ता।।

प्रभु ‘श्री राम’ के गुण अनन्त हैं, उनकी कीर्ति भी अनन्त है। अनेक संतों ने राम जी के गुण, यश, कीर्ति और चरित्र का भिन्न-भिन्न सुंदर वर्णन किया है। देवभूमि भारतवर्ष में अनेकों अनेक राजाओं के राज्य प्रतिस्थापित हुए, जिन पर अनेकों प्रताप शाही तथा धर्म संपन्न राजाओं ने शासन किया। नहुष, ययाति, शिवि और सत्यवादी हरिश्चंद्र जैसे प्रतापी सम्राट पुण्य धरा भारतवर्ष में हुए।

महाराज दशरथ जैसे सच्चे भगवत प्रेमी तथा सत्य प्रिय सम्राट भी भारत में हुए जिन्होंने शरीर त्याग दिया, परंतु सत्य को नहीं छोड़ा। इन सबको हम श्रद्धा सम्मान के साथ स्मरण करते हैं, परंतु इनके राज्यों को नहुष राज्य, शिवि राज्य, हरिश्चंद्र राज्य अथवा दशरथ राज्य कहकर स्मरण नहीं किया जाता, बल्कि हम राम के राज्य को ‘रामराज्य’ कहकर स्मरण करते हैं तथा हर युग में प्रत्येक राज्य को रामराज्य देखने की कल्पना  करते हैं। ‘रामराज्य’ का नाम आते ही धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष  की सार्थकता तथा चहुं ओर शांति, न्याय और मंगल कल्याण का भाव मन में उभर आता है। राम राज्य की खुशहाली और धर्म परायणता का मुख्य कारण श्री राम का मर्यादाओं से परिपूर्ण चरित्र था।

‘मंगल भवन अमंगल हारी’
जो मंगल कल्याण करने वाले और प्रत्येक प्रकार के अमंगल का हरण करके जीवों को सुखी करने वाले हैं।  अयोध्या के गौरव व सम्पूर्ण धरा धाम को अपने नाम मात्र से पवित्र करने वाले श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहे जाते हैं वास्तव में परब्रह्म परमात्मा के रामस्वरूप को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहते हैं, इसे कम लोग जानते हैं। श्रीराम ने सब प्रकार की सर्वोत्तम मर्यादाएं स्वयं के आचरण में धारण करते हुए प्रतिष्ठित की थीं। आपने सम्राट होने के पूर्व अपने निर्मल पवित्र चरित्रों द्वारा सर्वोत्तम मर्यादाओं का स्वयं पालन करके दिखाया कि एक व्यक्ति को समाज, परिवार और तमाम रिश्तों आदि के साथ कैसे संतुलित व्यवहार करना चाहिए। एक व्यक्ति को जीवन यात्रा चलाने के लिए तथा जीवन के महान उद्देश्य परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति के लिए किस प्रकार के गुणों की, किस प्रकार के त्याग-तप की आवश्यकता होती है। इसका दिग्दर्शन भगवान श्री रामचंद्र जी ने अपनी लीलाओं द्वारा मर्यादाओं में प्रतिस्थापित कर के प्रत्यक्ष कर दिया।
 
* त्याग तप को प्रदॢशत करता श्री राम का चरित्र जन मानस के लिए प्रेरणा है कि कुल की आन व पितृ आज्ञा पालन हेतु राज मुकुट, राज सुखों का पल में त्याग कर वल्कल वस्त्र धारण कर मुनियों के भेस में वन गमन करते हैं, तनिक भी मन में किसी के प्रति रोष, क्रोध नहीं, वही शांत स्वभाव, चित में स्थिरता को धारण किए हुए अनेकों वर्णों के जीवों का उद्धार किया और वहां उन्होंने अपनी सुंदर नीतियों द्वारा वर्ण भेद को मिटा कर, मैत्री धर्म की मर्यादा को स्थापित किया।

* ज्ञान के अथाह सागर होने के बावजूद सदैव ऋषि-मुनियों के श्री मुख से धर्म, नीति पूर्ण उपदेश ग्रहण करते तथा धर्म नीति पूर्ण आचरण करते हुए उन्होंने दर्शाया कि ज्ञान अनंत है। उसे अर्जित करने की कोई सीमा नहीं होती तथा ज्ञान प्राप्ति तभी सार्थक होता है जब वह ज्ञान व्यक्तित्व का अंग बन जाए।

* राज्य रोहण के पश्चात उन्होंने जो सर्वोत्तम शासन व्यवस्था; अर्थ नीति, धर्म नीति, समाज नीति तथा राजनीति की मर्यादा स्थापित की उन सबके समूह का नाम ही ‘रामराज्य’ है। उन्होंने व्यष्टि तथा समष्टि दोनों के लिए ही रची हुई मर्यादाओं का अपने जीवन में तथा राज्य के द्वारा भली-भांति परिपालन किया ।


* रामराज्य का स्वरूप राम राज्य में सभी वर्गों के समस्त नर-नारी सच्चरित्र, वर्णाश्रम धर्म परिपालन तथा सब कर्तव्य निष्ठ थे। कर्तव्य का मानदंड अपनी इच्छा मात्र नहीं था। वह वेद मार्ग को अर्थात वेदों की आज्ञानुसार और शास्त्र वचनों को मानदंड मानकर जीवन-यापन करते थे। इसके फलस्वरूप रोग, शोक तथा भय की प्राप्ति उनको नहीं होती थी। सभी धर्म-परायण थे तथा काम, क्रोध, लोभ, मद आदि से सर्वथा दूर रहते थे, कोई किसी से वैर नहीं करता था। वैर के अभाव में प्रेम स्वाभाविक ही है। सभी गुणों से गुण संपन्न, पुण्यात्मा, ज्ञानी और चतुर थे पर उनकी चतुरता भजन में, ज्ञान में थी। परदारा परधन अपहरण में नहीं। सभी मर्यादित जीवन में आस्था रखने वाले थे। (क्रमश:)
—साध्वी कमल  वैष्णव 

Jyoti

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