Marriage rituals in hinduism: शास्त्रों से जानें, हिंदू संस्कारों में क्यों अहम है विवाह संस्कार
punjabkesari.in Monday, Jul 29, 2024 - 09:26 AM (IST)
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Marriage is an important sacrament: मानव के चार आश्रमों में से गृहस्थ आश्रम में प्रवेश प्राप्त करने के लिए विवाह या पाणिग्रहण संस्कार का विधान किया गया है। सहधर्मचारिणी से संयोग होना ही विवाह कहलाता है। विवाह के लिए धर्मसूत्रों में पाणिग्रहण, परिणय आदि पदों का इस्तेमाल किया गया है। विवाह संस्कार के पश्चात ही मनुष्य संतान को उत्पन्न करने, धार्मिक कृत्य, लोक प्रतिष्ठा का अधिकारी बनता है।
मनु ने स्त्रियों के उपनयन संस्कार के विषय में कहा है कि स्त्रियों का विवाह संस्कार ही वैदिक संस्कार (यज्ञोपवीत रूप), पति सेवा ही गुरुकुल निवास (वेदाध्ययरूप) और गृहकार्य ही अग्निहोत्र कर्म कहा गया है।
वैवाहिकोधर्मविधि: स्त्रीणां संस्कारो वैदिक: स्मृत:। पतिसेवा गुरौ वासो गृहार्थोऽग्निपरिक्रिया॥
ब्रह्मचर्य अवस्था में गुरु के आश्रम में निवास कर प्राप्त विद्या और आचार आदि को जीवन में चरितार्थ करने लिए गृहस्थ आश्रम का आरंभ विवाह संस्कार से ही होता है। श्रुतियों और स्मृतियों में विवाह संस्कार का विधान विस्तारपूर्वक बताया गया है। मनु मानव को गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का समय बताते हुए कहते हैं कि ब्रह्मचारी को चाहिए कि अखंडित ब्रह्मचर्य को धारण करते हुए वेदों का अध्ययन कर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करें।
वेदानधीत्य वेदौ वा वेदंवाऽपि यथाक्रमम्। अविलुप्त ब्रह्मचर्यो गृहस्थाश्रममावसेत्॥
विवाह के तीन प्रमुख उद्देश्य धर्म, संपत्ति, प्रजा एवं रति हैं। विवाह से पूर्व वर-वधू के गुण, कर्म, स्वभाव की परीक्षा होती थी। तत्पश्चात समान आचार-विचार वाले वर-वधू का विवाह किया जाता था।
अव्यंगंगी सौ यना नीं हंसवारणगामिनीम्। तनुलोमकेशदशनां मृद्वंगीमुद्वहेत्स्त्रियम्।
गृह्यसूत्रों में विवाह की विधि के बारे में भी विस्तार से वर्णन मिलता है। विवाह संस्कार के लिए वधू उपस्थित वर का स्वागत करती है।
सत्कार के लिए वह वर को आसन, अर्घ्य एवं मधुपर्क देती है। वर मधुपर्क को चारों दिशाओं में छिड़क कर उसका सेवन करता है। कन्या का पिता उपस्थित वर को गोदान करता है।
कन्यादान विवाह संस्कार की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। वर एवं वधू आहुतियां प्रदान करते हैं। आहुतियों से वर-वधू राष्ट्र की रक्षा के लिए स्वयं को समर्पित करने के भाव व्यक्त करते हैं। प्रधान यज्ञ के बाद वर-वधू एक-दूसरे के हाथ पकड़कर खड़े होते हैं। वर वधू का आजीवन भरण-पोषण एवं रक्षा करने की प्रतिज्ञा करता है। वधू पति को पत्थर के समान दृढ़ रहने का आश्वासन देती है। वधू यज्ञकुंड के पूर्व की ओर मुख करके धान की खील को घृत से सिञ्चित कर 3 आहुतियां मंत्रों सहित प्रदान करती है। चौथी खील की आहुति मौन होकर देती है। वर-वधू उत्तर दिशा में साथ-साथ पश्चिम दिशा में सात पगों के माध्यम से परमात्मा से पुत्र, ऊर्जा, राय, प्रज्ञा आदि मांगते हैं। वर-वधू को गृहस्थ आश्रम में अपने साथ अटल बने रहने के लिए आशीर्वाद प्रदान करता है।
मनुस्मृति में 8 प्रकार के विवाहों का वर्णन है- ब्राह्य, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गांधर्व, राक्षस और पिशाच।
ब्राह्यो दैवस्तथैवार्ष: प्राजापत्यस्तथाऽसुर: गान्धर्वो राक्षसश्चैव पैशाचश्चाष्टमोऽधम:।।
विवाह संस्कार को शारीरिक या भौतिक दृष्टि से ही नहीं पारमार्थिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्व दिया गया है। जिन दो शरीरों का विवाह संस्कार होता है, वे शरीर से भिन्न होते हुए भी आत्मा से एक हो जाते हैं। इस संस्कार के द्वारा दोनों स्त्री और पुरुष में शरीर, मन और प्राण का संबंध स्थापित होता है। अत: विवाह संस्कार षोडश संस्कारों में एक महत्वपूर्ण संस्कार है।