जीवन में अमंगल को हर लेंगी तुलसी माता बस करनी होगी ज़री सी मेहनत

Wednesday, Nov 06, 2019 - 04:32 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
तुलसी विवाह व देव उठनी एकादशी के दिन श्री हरि की पूजा व तुलसी माता का विशेष पूजन होता है। इस बार तुलसी विवाह का ये मुख्य त्यौहार 08 नवंबर दिन शुक्रवार को पड़ रहा है। इस दिन भगवान विष्णु को माता तुलसी को खुश करने के लिए बहुत कुछ किया जाता है। कोई अपने घर में इनकी बारात लेकर आता है तो कोई अपनी तुलसी को शालिग्राम के साथ विवाह बंधन में बांधकर विदा करता है। माना जाता है ऐसा करने वाले जातक के घर-परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है तथा जीवन में हर तरफ़ से खुशियां आने लगती हैं। इसके अलावा भी धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है जिस व्यक्ति के जीवन में उसके साथ अमंगल या अप्रिय घटनाएं बार-बार घटित होती हैं उससे मुक्ति पाने के लिए उस व्यक्ति को देव उठनी ग्यारस के दिन गोधूली बेला में भगवान शालिग्राम व तुलसी के विवाह में इन 8 मंगलाष्टक मंत्रों का पाठ करना चाहिए। मान्यता है ऐसा करने से परिवार में अन्न वृद्धि, बल वृद्धि, धन वृद्धि, सुख वृद्धि, प्रजा पालन, ऋतु व्यवहार एवं मित्रता में वृद्धि होने के साथ जीवन के सारे अमंगल भी दूर होते हैं।

मंगलाष्टक मंत्र पढ़ने से पहले जान लें इसकी विधि-
एक कटोरी में थोड़े से चावलों में हल्दी मिलाकर इन्हें पीले कर लें। इसके बाद देवी तुलसी जी एवं भगवान शालिग्राम जी का विधिवत पूजन करें। और आखिर में निम्न 8 मंत्रों का उच्चारण करें।

ध्यान रहे एक-एक मंत्र का उच्चारण होने के बाद तुलसी-शालिग्राम जी पर सभी अमंगल दूर होने के भाव से चावल अर्पित करें।

ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः। चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः। प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः, स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥

गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ, गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः। गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी, गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥

नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं, तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम्। गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्, संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥

बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः, जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः। मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः, पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥

गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः, सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती। स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी, वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥

गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा, कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका। शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी, पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥

लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा, गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः। अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे, रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥

ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः, शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः। विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा, इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥

।।इति मंगलाष्टक समाप्त।।
 

Jyoti

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