मनुष्य को बनना चाहिए हर स्थिति में आशावादी

Wednesday, Feb 12, 2020 - 09:50 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
मनुष्य द्वारा निरंतर यह महसूस करना कि उसके चारों ओर सब कुछ कुशलतापूर्वक चल रहा है, जीवन में बड़ी उपलब्धि है। सकारात्मकता और आशावाद का यह भाव स्थिर बन जाए तो मनुष्य सभी आंतरिक और बाह्य विकारों पर आसानी से विजय पा लेता है। जीवन में व्यक्ति के लिए दुख, दुर्गति, समस्या, पीड़ा और बाधाओं का जो जंजाल तैयार होता है वह सर्वप्रथम उसकी सोच में जगह बनाता है। 

इसके विपरीत यदि सोच में उक्त दुर्गणों, नकारात्मक विचारों और अनुचित वैचारिक दिशाओं के स्थान पर प्रशांत मनोबल की प्रेरणा से आशा, संवेदना, सकारात्मकता, प्रेम, करुणा, आत्मङ्क्षचतन जैसे सद्गुण  होंगे तो मानवीय जीवन ईश्वरीय इच्छा के अनुरूप प्राकृतिक स्वरूप में आनंदित रहेगा। सोच, विचार, भाव, साधारण व आत्मिक चिंतन-मनन में सदैव सकारात्मक बने रहना मानव का निजी धर्म है। इस धर्म का मन, वचन और कर्म से पालन करने पर मनुष्य का साधारण अस्तित्व असाधारण बन जाता है। 
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उसे इतनी आत्मशक्ति मिल जाती है कि यदि उसका क्षणिक ध्यान भी नकारात्मकता बढ़ाने वाले दुर्गणों की ओर जाता है तो सकारात्मक गुणों से भरपूर उसकी आत्मचेतना सचेत हो उठती है। वह क्षण नकारात्मक परिधि को छूते अपने विचारों पर विराम लगाते हुए सकारात्मक मार्ग पर गतिमान हो जाता है। सकारात्मकता और आशावादिता की समृद्धि से परिपूर्ण आत्मस्थिति मनुष्य को साधारण मनुष्य रहने ही नहीं देती। 
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आशावान होने, सकारात्मकता के साथ अपने मानवीय कत्र्तव्यों में व्यस्त रहने से आत्मिक संवेदना व सभ्यता में वृद्धि होती है। यह व्यवस्था मानवीय जीवन को अनेक स्तरीय दैवीय सुरक्षा प्रदान करती है। अति सकारात्मक तथा आशावान व्यक्ति के चहुं ओर सदैव एक अदृश्य ऊर्जा चक्र घूमता रहता है। 

Lata

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