Majuli Island: दुनिया के सबसे बड़े द्वीप पर मनाए जाने वाले त्यौहार बहुत ही रंगीन और जीवित होते हैं
punjabkesari.in Saturday, Nov 04, 2023 - 09:49 AM (IST)
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Majuli Island: भारत के उत्तर-पूर्व में बसे बेहद खूबसूरत और प्राकृतिक सुंदरता एवं सम्पदा से भरपूर राज्य असम में अनेक पर्यटक स्थल हैं। पूर्वोत्तर के लिए यह ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ नाम से भी मशहूर है और यहीं स्थित है खूबसूरत नदी द्वीप माजुली जिसकी खूबसूरती पर्यटकों को बरबस ही अपनी तरफ आकर्षित करती है और उनका दिल जीत लेती है। माजुली दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप है जो असम में ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित है। ब्रह्मपुत्र भारत की अकेली ऐसी नदी है जिसे इसके विस्तार की वजह से ‘मेल रिवर’ कहा जाता है। कई जगह यह नदी दस किलोमीटर से भी अधिक चौड़ी हो जाती है। बीच-बीच में बालू के टीले आते हैं जिन्हें नदी की तेज लहरों का प्रवाह लगातार काटता हुआ नजर आता है। मछुआरे अपनी नाव लिए बड़े-बड़े जालों के साथ मछलियों के फंसने का धैर्यपूर्वक इंतजार करते दिखाई देते हैं। पानी की सतह के करीब उड़ते हुए पक्षियों के झुंड बेहद खूबसूरत नजारा पेश करते हैं।
Cultural Capital of Assam असम की सांस्कृतिक राजधानी
माजुली द्वीप उत्तर में सुबनसिरी नदी और दक्षिण में ब्रह्मपुत्र नदी से बना है। इसे 16वीं शताब्दी से ही असम की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जाना जाता है। माजुली द्वीप का मुख्य गांव नागमार है, जहां आज भी कई आयोजन और उत्सव होते हैं। यह द्वीप पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त है और यहां चारों तरफ छाई हुई हरियाली टूरिस्टों को अपनी तरफ खींच लेती है। इस द्वीप पर मनाए जाने वाले त्यौहार बहुत ही रंगीन और जीवित होते हैं जिन्हें देखने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से पर्यटक इस स्थान की यात्रा करते हैं। यहां रास पूर्णिमा त्यौहार को भव्य तरीके से मनाया जाता है। जिसमें भगवान श्री कृष्ण के जीवन पर आधारित नृत्य प्रस्तुत होता है। इसे देखने के लिए पर्यटक दूर-दूर से आते हैं।
Area is Decreasing घट रहा है क्षेत्रफल
20वीं शताब्दी के शुरुआती दौर में, माजुली का कुल क्षेत्रफल 1255 वर्ग किलोमीटर था। हालांकि, लगातार होने वाले कटाव के कारण, आज यह केवल 352 वर्ग किलोमीटर ही रह गया है। वर्तमान में माजुली शानदार वनस्पति और जीव-जंतुओं से घिरी ‘हरड़’ (बीच से चौड़ी और किनारों से पतली) के आकार की समतल भूमि है। यहां पक्षियों की लगभग 260 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें छोटी ग्रीबे, चित्तीदार चोंच वाले या धूसर हवासील (ग्रे पेलिकन), बड़े जलकाग, बैंगनी बगुले, तालाबी बगुले, बड़ा सफेद बगुला, खुली चोंच वाला सारस, सफेद गर्दन वाला सारस, बैगनी जलमुर्गी, सफेद जोरा, शमा, आदि द्वीप में या उसके चारों ओर के जल निकायों में पाए जाते हैं। इस द्वीप में कई स्थिर जल निकाय या बीलें, खेती योग्य और गैर-खेती योग्य क्षेत्र, आर्द्रभूमि और रेत के किनारे हैं। माजुली की आबादी में मिशिंग, देवरी और सोनोवाल कचारी नामक आदिवासी समुदायों के साथ-साथ कोच, नाथ, कलिता, अहोम, कैवर्त आदि गैर-आदिवासी समुदाय शामिल हैं। इस द्वीप जिले में लगभग 144 गांव हैं जिनकी आबादी 150000 से अधिक है और घनत्व 300 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है।
100 types of rice are grown in Majuli माजुली में उगाए जाते हैं 100 प्रकार के चावल
माजुली द्वीप पर करीब 100 विभिन्न प्रकार के चावल उगाए जाते हैं। ऐसे में अगर आप यहां की यात्रा कर रहे हैं तो यहां के चावलों का स्वाद लेना कतई न भूलें। इसके अलावा यहां टूरिस्टों को सुंदर मिट्टी के बर्तन और हथकरघा वस्तुएं भी मिलेंगी, जिन्हें खरीदकर वे अपने घर में सजा सकते हैं।
Popular for masks मुखौटों के लिए लोकप्रिय
माजुली अपने हस्त-शिल्प के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां के कई घरों में आपको बांस की खपच्चियों से तरह-तरह के मुखौटे बनाते लोग दिख जाएंगे। घरों में रंग-बिरंगे पचासों मुखौटे दीवारों पर लटके रहते हैं। जो यहां के हस्त शिल्प की अद्भुत झांकी पेश करते हैं। पौराणिक कथाओं में से निकलकर भीम, नरसिंह, रावण, नरकासुर और न जाने कितने ही मिथकीय किरदारों के रंग-बिरंगे मुखौट आपको अचंभित कर देते हैं। मुखौटे बनाने की यह परंपरा असम के कल्चरल आइकन श्रीमंत शंकरदेव की देन है। यहां श्रीकृष्ण से जुड़ी कथाओं के चित्रण के लिए रंगमंचीय विधा का प्रयोग होता है जिसे ‘भाओना’ कहा जाता है। इसमें इन मुखौटों का प्रयोग अहम है। ये मुखौटे प्राकृतिक चीजों से बनते हैं। इनमें बांस, मिट्टी, गोबर, जूट और लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।
History इतिहास
प्राप्त जानकारी के अनुसार माजुली का निर्माण भूकम्प, कटाव और नदियों की धारा के दिशा परिवर्तन जैसी प्राकृतिक घटनाओं की एक शृंखला के बाद हुआ था। असम के शाही इतिहास (बुरंजी) में उल्लेख है कि माजुली को इसका नाम 16वीं शताब्दी ईस्वी में मिला। एक समय में यह सुतिया साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था और माना जाता था कि तब इसे रत्नापुर कहा जाता था।
प्राचीनतम इतिहास में से एक, असम बुरंजी में कहा गया है कि मुगल सेना ने 1634 ईस्वी में माजुलीर बाली या द्वीप के रेतीले किनारे पर अहोमों के साथ युद्ध किया था। उस समय यह भूमि का एक संकीर्ण, लंबा टुकड़ा था, जिसके किनारे लोहित नदी और प्राचीन देहंग नदी की वर्तमान धारा में ब्रह्मपुत्र नदी बहा करती थी। यह 18वीं शताब्दी में था कि माजुली का ब्रह्मपुत्र नदी के शीर्षाभिमुख कटाव और धारा के दिशा परिवर्तन के कारण, वर्तमान भौगोलिक स्वरूप बना।
How to reach कैसे पहुंचें
यह द्वीप जोरहाट शहर से 20 और गुवाहाटी से 347 किलोमीटर दूर स्थित है। जोरहाट के करीब ही हवाई अड्डा भी है और यह रेल तथा सड़क मार्ग से भी अच्छे से जुड़ा हुआ है। जोरहाट के निमाटी घाट से चलने वाली ‘जैट्टी’ (विशाल नौकाओं) से यहां तक की यात्रा करीब घंटे भर की है। इस यात्रा का आखिरी पड़ाव कमलाबाड़ी नामक एक घाट है जहां से आप माजुली द्वीप में प्रवेश करते हैं।