Mahavir Jayanti Day 2021- स्वर्ग में भी होती थी महावीर स्वामी की प्रशंसा

Saturday, Apr 24, 2021 - 03:10 PM (IST)

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24 अप्रैल (वार्ता): जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी जी का जन्म चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के मंगल दिन बिहार के वैशाली कुंड ग्राम में राजा सिद्धार्थ राज प्रसाद में हुआ था। कहा जाता है कि तीर्थंकर का अवतार होते ही तीनों लोक आश्चर्यकारी आनंद से खलबला उठे। वैशाली में प्रभु जन्म से पूर्व चारों ओर नूतन आनंद का वातावरण छा गया। वैशाली कुंडलपुर की शोभा अयोध्या नगरी जैसी थी। उसमें तीर्थंकर के अवतार की पूर्व सूचना से संपूर्ण नगरी की शोभा में और भी वृद्धि हो गई थी। 

What is the story of Mahavira: प्रजा जनों में सुख-समृद्धि और आनंद की वृद्धि होने लगी तथा महाराजा सिद्धार्थ के प्रांगण में प्रतिदिन तीन बार साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा होती थी। एक बार बाल महावीर अपने बाल मित्रों के साथ वन में खेल रहे थे। अचानक एक आश्चर्यजनक घटना हुई। फू फू करता एक भयंकर विषैला नाग अचानक ही वहां आ पहुंचा। जिसे देख कर सब मित्र इधर-उधर भागने लगे क्योंकि उन्होंने कभी ऐसा भयंकर विषैला सर्प नहीं देखा था परंतु महावीर न तो भयभीत हुए और न ही भागे। वह तो निर्भयता से सर्प की चेष्टाएं देखते रहे।

जैसे मदारी सांप का खेल खेल रहा हो और हम देख रहे हो। वर्धमान कुमार उसे देखते रहे। शांतचित्त से निर्भयता पूर्वक अपनी ओर देखते हुए वीर कुमार को देखकर नागदेव आश्चर्यचकित हो गया, कि वाह ! यह वर्धमान कुमार आयु में छोटे होने पर भी महान और वीर है। उसने उन्हें डराने के लिए अनेक प्रयत्न किए। बहुत फुफकारा परंतु वीर तो अडिग रहे। दूर खड़े राजकुमार यह देख घबराने लगे कि अब क्या होगा। सर्प को भगाने के लिए क्या किया जाए। कुछ देर में भयंकर सर्प अद्दश्य हो गया। उसके स्थान पर एक तेजस्वी देव खड़ा था और हाथ जोड़कर वर्धमान की स्तुति करते हुए कह रहा था कि आप सचमुच महावीर हैं। आपके अतुल बल की प्रशंसा स्वर्ग के अंदर भी करते हैं। मैं स्वर्ग का देव हूं। मैंने अज्ञान भाव में आपके बल और धैर्य की परीक्षा हेतु नाग का रूप धारण किया। मुझे क्षमा कर दें।

तीर्थंकरों की दिव्यता वास्तव में अछ्वुत है। प्रभु आप वीर नहीं बल्कि महावीर हैं। पटना के बाहर वाले इलाके गंगा नदी के पश्चिमी तट पर वैशाली कुंड ग्राम के नागखंड नामक उपवन में शिविका से उतरकर प्रभु महावीर एक स्फटिक शिला पर विराजे। वर्धमान कुमार ने नम: सिद्धेभ्य कहकर प्रथम सिद्धों को नमस्कार किया। इस प्रकार देहतीत सिद्धों को निकट जाकर प्रभु ने आभूषण उतारे। वस्त्र भी एक-एक करके उतार दिए और सर्वथा दिगंबर दशा धारण की। वर्धमान कुमार जितने वस्त्र में शोभते थे, दिगंबर दशा में अधिक सुशोभित होने लगे। मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी के संध्याकाल स्वयं दीक्षित होकर महावीर मुनिराज तप धारण करके अप्रमत्त भाव से चैतन्य ध्यान में लीन हो गए। 

भगवान महावीर के पांच सिद्धांत पूरे विश्व में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह के रूप में प्रसिद्ध हुए। जिनको अपनाकर लाखों जीवों ने अपना कल्याण किया। उनका सबसे बड़ा सिद्धांत था कि जियो और जीने दो अर्थात स्वयं जीते हुए संसार के प्रत्येक प्राणी को जीने का अधिकार है। भगवान महावीर स्वामी के शरीर की ऊंचाई 7 फुट थी। रंग पीला स्वर्ण जैसा था। सर्वांग सुंदर उनकी आकृति थी। सुगंधित श्वास था। अछ्वुत रूप अतिशय बल एवं मधुर वाणी थी। उस शरीर में 1008 उत्तम चिन्ह थे। वैशाख शुक्ला दशमी के दिन ऋजुकला नदी के तट पर वीर प्रभु को केवल ज्ञान हुआ। समवशरण की रचना हुई तथा कार्तिक कृष्णा अमावस्या के दिन महावीर भगवान पावापुरी के पदम सरोवर नामक स्थान से मोक्ष पधारे। लाखों भक्तों ने करोड़ों दीपक की आंवलिया सजाकर प्रभु के मोक्ष कल्याणक का उत्सव मनाया। कार्तिक कृष्ण अमावस्या दीपावली के रूप में प्रसिद्ध हुई। जो आज भी भारत वर्ष में प्रसिद्ध है।

Niyati Bhandari

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