Mahavir jayanti 2020: शांति के लिए अपनाएं भगवान महावीर का संदेश

Monday, Apr 06, 2020 - 06:34 AM (IST)

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भारत में वैशाली के उपनगर कुण्डपुर के राजा सिद्धार्थ के घर तथा माता त्रिशला की कोख से ईस्वी पूर्व  599 में महावीर का जन्म हुआ। 30 वर्ष की आयु में वे गृह त्याग कर मुनि बन गए। महाभिनिष्क्रमण के पश्चात् महावीर साधना के उस पथ पर चल पड़े, जो उन्हें अभीष्ट था। वह घोर तप में लीन रहते थे और स्तुति निंदा में समभाव रखते थे। इस प्रकार 12 वर्ष तक घोर तप करने के पश्चात् उन्हें आत्म बोध की प्राप्ति हुई। तब उन्होंने उपदेश देना आरंभ किया।

भगवान महावीर क्रांतिकारी महापुरुष थे। उन्होंने यज्ञों में पशुबलि का घोर विरोध किया और इसे हिंसा अनर्थादण्ड स्वीकार किया। उन्होंने मुक्ति मार्ग के तीन सोपान स्वीकार किए-सम्यग् विश्वास, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चरित्र। महावीर ने एक ओर वैचारिक जगत में क्रांति पैदा की तो दूसरी ओर दार्शनिक जगत में जन-मानस को प्रभावित किया। भगवान महावीर ने ऐसे युग में नारी को उच्च स्थान प्रदान किया, जब उसे मुक्ति-द्वार की अधिकारिणी नहीं माना जाता था। उन्होंने स्पष्ट कहा कि जीव कर्म करने में तो स्वतंत्र है परंतु उसका फल भोगने में परतंत्र है। कर्म का फल स्वयं कर्ता को ही भोगना पड़ता है। उसके फल के लिए किसी ईश्वर या देवता की आवश्यकता नहीं।

भगवान महावीर को अपने युग में बहुत से कष्ट सहन करने पड़े। उनके शिष्य गोशालक ने उन पर तेजोलेश्या छोड़ी थी, परंतु महावीर ने सहनशीलता दिखाई। उनकी इस सहनशीलता से संसार को यह संदेश है कि अंत में सहनशीलता ही विजय को प्राप्त करती है। हिंसा से हिंसा बढ़ती है। अत: संसार में शांति के लिए युद्धों का मार्ग छोड़कर परस्पर सौहार्द का वातावरण बनाना चाहिए।

आधुनिक युग में भौतिकवाद तथा अणुयुद्ध की आशंका तथा परस्पर वैमनस्य की जटिलताओं के इस संसार में महावीर का संदेश अधिक समीचीन है। जीओ और जीने दो तथा पंचशील ही सहअस्तित्व की विश्वव्यापी मान्यता है, जिसकी उद्घोषणा भगवान महावीर ने सहस्रों वर्ष पूर्व ही कर दी थी। विश्व शांति के लिए भगवान महावीर की देशनाओं और संदेशों को अपनाना होगा।

 

 

Niyati Bhandari

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