Mahavir Jayanti: जानें, राजा के बेटे कैसे बन गए मुनि

Wednesday, Apr 17, 2019 - 10:24 AM (IST)

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भारत में वैशाली के उपनगर कुंडपुर के राजा सिद्धार्थ के घर तथा माता त्रिशला की कोख से ई.पू. 599 में महावीर का जन्म हुआ। 30 वर्ष की आयु में वह गृहत्याग कर मुनि बन गए। महाभिनिष्क्रमण के पश्चात् महावीर साधना के उस पथ पर चल पड़े जो उन्हें अभीष्ट था। वह घोर तप में लीन रहते थे और स्तुति-निन्दा में समभाव रखते थे। इस प्रकार बारह वर्ष तक घोर तप करने के पश्चात् उन्हें आत्म बोध की प्राप्ति हुई। तब उन्होंने उपदेश देना आरम्भ किया।

भगवान महावीर क्रांतिकारी समाज उद्धारक महापुरुष थे। उन्होंने यज्ञों में पशुबलि का घोर विरोध किया और इसे हिंसा एवं अनर्धादंड स्वीकार किया। उन्होंने मुक्ति मार्ग के तीन सोपान स्वीकार किए-सम्यग विश्वास, सम्यग ज्ञान और सम्यग चरित्र। महावीर ने एक ओर वैचारिक जगत में क्रांति पैदा की तो दूसरी ओर दार्शनिक जगत में जन-मानस को प्रभावित किया। भगवान महावीर ने ऐसे युग में नारी को उच्च स्थान प्रदान किया जब उसे मुक्ति-द्वार की अधिकारिणी नहीं माना जाता था।

उन्होंने कहा कि उसका सतीत्व जागे, उसका नारीत्व चमके और वह पुरुष के समान दर्जा पाकर चतुर्वध संघ को अपने ज्ञान, दर्शन और चारित्रय से गौरवांवित करे। इसीलिए नारी उत्थान और कल्याण में महावीर की महत्वपूर्ण भूमिका और योगदान रहा है।  महावीर ने कहा मनुष्य-मनुष्य से न डरे, मनुष्य-मनुष्य से भय नहीं खाए, मनुष्य-मनुष्य को कभी न सताए। सभी सुखी हों, सभी का कल्याण हो और सभी का भय दूर हो।

उन्होंने स्पष्ट कहा कि जीव कर्म करने में तो स्वतंत्र है परंतु उसका फल भोगने में परतंत्र है। कर्म का फल स्वयं कर्ता को ही भोगना पड़ता है। उसके फल के लिए किसी ईश्वर या देवता की आवश्यकता नहीं।

आधुनिक युग के भौतिकवाद तथा अणुयुद्ध की आशंका तथा परस्पर वैमनस्य की जटिलताओं के इस संसार में महावीर का संदेश अधिक समीचीन है। जीओ और जीने दो तथा पंचशील ही सहअस्तित्व की विश्वव्यापी मान्यता है जिसकी उद्घोषणा भगवान महावीर ने सहस्रों वर्ष पर्व ही कर दी थी। विश्व शांति के लिए भगवान महावीर की देशनाओं और संदेशों को अपनाना होगा।


 

Niyati Bhandari

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