Mahavir Jayanti 2024: दुनियां में सुख-शांति बनाए रखने के लिए याद रखें भगवान महावीर के ये विचार

Sunday, Apr 21, 2024 - 11:35 AM (IST)

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Mahavir Jayanti 2024: जीवन का वास्तविक सुख आंतरिक शांति में है। आंतरिक शांति भावनाओं की निर्मलता में है। हम जितना विकार मुक्त रहते हैं उतने ही दुखों से मुक्त रहते हैं और उतने ही हम धार्मिक बन सकते हैं। हमारा मन यदि निर्मल है तो ही वह सच्चा धर्म है।

जैन धर्म अनादि काल से चला आ रहा है। जैन धर्म में अहिंसा और कर्मों की विशेषता पर विशेष बल दिया जाता है। भगवान महावीर ने मुख्य रूप से पांच सिद्धांत दुनिया को दिए हैं। इनमें से प्रमुख तीन- अहिंसा, स्यादवाद एवं अनेकांत और अपरिग्रह की चर्चा हम करेंगे। इन्हें अगर विश्व ईमानदारी से अपनाए तो दुनिया में सुख-शांति हो सकती है।

अहिंसा: अहिंसा जैन धर्म की मुख्य देन है। किसी भी जीव को मारना नहीं, हिंसा न करना ही अहिंसा है। किसी का दिल दुखाना, किसी की स्वतंत्रता को बाधित करना, किसी के साथ अन्याय एवं शोषण करना, किसी की आजीविका बंद कर देना अथवा करा देना, ये सब ङ्क्षहसा है। इनका त्याग ही अहिंसा है।

भगवान महावीर ने पशु-पक्षी और पेड़-पौधों तक की हत्या न करने का अनुरोध किया है। अहिंसा की शिक्षा से ही समस्त विश्व में दया को धर्म प्रधान अंग माना जाता है। भगवान महावीर का ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धांत जन कल्याण की भावनाओं को परिलक्षित करता है। दया, करुणा, प्रेम, दान, क्षमा, सत्य आदि सभी गुण अहिंसा में आ जाते हैं। हमारे आज के वैज्ञानिक कहते हैं कि हमें पानी छानकर पीना चाहिए इसलिए हम आजकल आर.ओ. आदि का उपयोग करते हैं, मगर भगवान महावीर स्वामी ने आज से लगभग अढ़ाई हजार वर्ष पूर्व ही यह बता दिया था कि एक पानी की बूंद में लगभग 36,450 जीवाणु होते हैं इसलिए हमें उनकी रक्षा के लिए पानी छानकर पीना चाहिए।

महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ने प्रतिपादित किया था कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है, मगर यह बात हमारे महावीर भगवान ने पहले ही कह दी थी कि पेड़-पौधे एक इंद्रिय जीव हैं इसीलिए जैन धर्म को वीतराग विज्ञान- वैज्ञानिक धर्म- भी कहा जाता है।

स्यादवाद एवं अनेकांत : मैं ही सही हूं, यह एकान्तवाद है। मैं भी सही हूं, यह अनेकांतवाद। अनेकांतवाद का अर्थ है कि वास्तविकता को जानने के लिए अपने दृष्टिकोण के साथ-साथ विरोधी दृष्टिकोण को भी परखना। किसी भी वस्तु का परीक्षण करने के लिए हमें केवल अपने दृष्टिकोण पर ही अडिग नहीं रहना चाहिए, बल्कि दूसरों की जगह अपने आप को रखकर उनका दृष्टिकोण भी लेना चाहिए।

अपरिग्रह : अपनी आवश्यकताओं को सीमित और मर्यादित करना ही अपरिग्रह है। संतोष परम सुख है और अपनी जरूरत पूरी होने के बाद साधन-साधना का प्रयोग जन सेवा में करना चाहिए। भगवान महावीर के सिद्धांतों में आज के समय में जिसकी नितांत आवश्यकता है वह है- ‘अनर्थ दंड व्रत’। इसका अर्थ होता है कि किसी भी चीज का दुरुपयोग न करें, हर चीज का सदुपयोग करें।

जैसे जल हम अपनी आवश्यकता के लिए चाहे जितना सदुपयोग में ले सकते हैं, मगर यदि हम इस जल को बिना किसी उद्देश्य के व्यर्थ में बहा देते हैं तो यह अनर्थ दंड व्रत है। उसी प्रकार यदि हम कमरे की बिजली, पंखा, एयर कंडीशनर, टी.वी., बल्ब, ट्यूबलाइट इत्यादि बिना किसी उद्देश्य के चालू रखते हैं तो भी यह अनर्थ दंड व्रत है। यदि हम मोबाइल का उपयोग उद्देश्य पूर्ण कार्यों में लगा रहे हैं या कर रहे हैं तब तो ठीक है। हम लोग यदि अपने मोबाइल पर व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम देख रहे हैं और बिना किसी उद्देश्य के अपना समय व्यतीत कर रहे हैं तो यह भी हमारे लिए एक अनर्थ दंड व्रत की श्रेणी में ही आएगा इसलिए अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए। उसे सच्चे मार्ग पर लगाना चाहिए।

आज भी भगवान महावीर ‘आऊट ऑफ डेट’ नहीं, बल्कि एकदम ‘अप-टू-डेट’ हैं। कोई भी आदमी अपने विचारों से ही ‘अप-टू-डेट’ होता है। भगवान महावीर को भी उनके विचारों के लिए ही जाना जाता है। भगवान ने अहिंसा का जो उपदेश 2,550 वर्ष पहले दिया था, उसकी वर्तमान में जितनी आवश्यकता है, उतनी तो भगवान महावीर के काल में भी नहीं थी, क्योंकि आज हिंसा ने भयंकर रूप धारण कर लिया है।

भगवान महावीर के रूप में विश्व को उस देवदूत की आवश्यकता है जो वैमनस्यता, हिंसा, घृणा, आतंकवाद से निजात दिलाकर प्यार, भाईचारा और सद्भाव का निर्माण कर सके इसलिए आज के इस वर्तमान को भगवान वर्धमान की आवश्यकता है।


 

Prachi Sharma

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