बलिदान दिवस: गांधी जी का जीवन चरित्र, आज भी है भारतीयों के लिए प्रेरणास्त्रोत

Tuesday, Jan 30, 2018 - 08:01 AM (IST)

विश्व के इतिहास में बहुत कम ऐसे व्यक्तित्व हुए जिन्होंने मानवता पर अपनी एक अलग छाप छोड़ी है। इनमें से एक हैं महात्मा गांधी। उनका जीवन बड़ा ही सरल, सादा परन्तु कठोर नियमों से बंधा हुआ था। उनका जीवन प्रयोगों की एक निरंतर कड़ी था। नैतिकता के प्रयोग का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण ब्रिटिश दासता से भारत की आजादी पर उनके द्वारा किया गया नवीन एवं अनोखा प्रयोग है। अधिकांश धार्मिक एवं आध्यात्मिक ग्रंथों में जिस सत्य की बात कही गई है, गांधी जी ने उन्हीं सत्यों के साथ स्वयं को रूपांतरित, परिवर्धित व परिशोधित करने का कार्य किया।


ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीयों पर अत्याचार और उनकी दयनीय स्थिति का मुख्य कारण गांधी जी ने भारतीय समाज की नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों में कमी को माना और इससे छुटकारा प्राप्त करने हेतु आधुनिक सभ्यता की आलोचना, देशज संस्कृति व मूल्यों की उपयोगिता को मान्यता देना और ब्रिटिश सत्ता के मुकाबले के लिए नैतिक शक्ति के रूप में अहिंसात्मक तरीके से इस्तेमाल की बात कही।


भेदभाव का मुकाबला करने के लिए गांधी जी के पास सत्य की शक्ति थी। उनकी पद्धति अहिंसक थी, दर्शन नैतिक था, सत्य और अहिंसा उनकी मजबूती। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों ने उनके विचार व दर्शन को प्रभावित किया जिसके परिणामस्वरूप एक सर्वोच्च शक्ति ईश्वर पर उनका विश्वास अटूट होता गया और उन्होंने आजीवन सत्य और अहिंसा के अतिरिक्त किसी अन्य विचार और कार्य का समर्थन नहीं किया।


सत्य और अहिंसा को गांधी जी ने स्वयं में ईश्वर का रूप बतलाया है और दोनों को ही साध्य और साधन माना है। अहिंसा सामाजिक जीवन में प्रेम की पहली अभिव्यक्ति है। गांधी जी ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि मैंने सत्य की खोज में अहिंसा को प्राप्त किया है। अत: अहिंसा की पवित्रता के महत्व पर गांधी जी ने विशेष बल दिया है और कहा कि व्यक्ति को विचार, भाषण और कर्म से भी अहिंसक होना चाहिए।


इस तरह व्यक्ति को शरीर के साथ मस्तिष्क से भी अहिंसक होना चाहिए। सत्य के लिए साधना और प्रतिबद्धता मानव अस्तित्व को न्याय संगत ठहराता है। यह सत्य आत्म प्रेम को आत्म त्याग में परिवर्तित कर देता है। चूंकि सत्य केवल एक है जो पूरे संसार पर छाया है इसलिए वास्तविक आनंद त्याग में है। अहिंसा का पालन करते हुए व्यक्ति आत्मशुद्धि कर लेता है तब उसका अंत:करण सत्य का दर्पण बन जाता है और शुद्ध अंत:करण ही ईश्वर का मंदिर है। 


गांधी जी ने व्रत और प्रार्थना को आत्मशुद्धि की प्रक्रिया का सबसे उत्कृष्ट साधन बताया है। इस तरह उन्होंने अहिंसा को परस्पर संबंधों से निकाल कर इसे परिष्कृत किया और इसे एक प्रभावशाली सामाजिक शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जिससे व्यापक स्तर पर उसे व्यवहार में लाया जा सके। गांधी जी ने स्वयं कहा है कि व्यक्ति अहिंसा को (मूल्य के रूप में) न केवल व्यक्तिगत स्तर पर व्यवहार में लाए बल्कि सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी इसका प्रयोग करे।


गांधी जी ने व्यक्ति के साथ सम्पूर्ण समाज को नैतिक बनाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि पृथ्वी का सूक्ष्मतम प्राणी भी ईश्वर का प्रतिरूप होने के कारण तुम्हारे प्यार का अधिकारी है। जो अपने साथ जीवन बिताने वाले मनुष्यों से प्यार करता है वही ईश्वर से प्यार करता है। अहिंसा का सकारात्मक अर्थ पृथ्वी के सभी प्राणियों से प्रेम है और यह अपना है, यह पराया है ऐसा संकीर्ण मनोवृत्ति वाले लोग ही सोचते हैं। उदार चरित्र वालों के लिए तो सम्पूर्ण पृथ्वी ही कुटुम्ब के समान हैं :

अयं निज: परोवेति गणना लघुचेतसाम्। उदार चरितानाम तु, वसुधैव कुटुम्बकम्॥

Advertising