निजी सुख से देश ज्यादा जरूरी था गांधी जी के लिए

Monday, Feb 10, 2020 - 10:48 AM (IST)

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सन् 1926 में दक्षिण भारत की यात्रा में गांधी जी के साथ अन्य सहयोगियों के अलावा काका साहेब कालेलकर भी थे। वह सुदूर दक्षिण में नागर-कोइल पहुंचे। वहां से कन्याकुमारी नजदीक ही था। इस दौरे से पहले गांधी जी कन्याकुमारी हो आए थे। वहां के मनोरम दृश्यों का उन पर गहरा प्रभाव था। वह चाहते थे कि काका भी वहां होकर आएं। गांधी जी जहां ठहरे थे, उस गृह स्वामी को बुलाकर उन्होंने कहा, ''काका को मैं कन्याकुमारी भेजना चाहता हूं। उनके जाने-आने का प्रबंध कर दीजिए। कुछ देर बाद उन्होंने देखा कि काका साहेब घर में ही बैठे हैं, तो उन्होंने गृह स्वामी से पूछा, ''काका के जाने का प्रबंध हुआ या नहीं?

किसी को काम सौंपने के बाद दोबारा उसे बोलना पड़े, यह बापू की आदत में शुमार नहीं था। फिर भी उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि वह कन्याकुमारी से काफी प्रभावित थे और वहां का मनोरम दृश्य काका साहेब को दिखाना चाहते थे। काका ने पूछा, ''आप भी आएंगे न? बापू ने कहा, ''एक ही स्थान पर घूमने की दृष्टि से बार-बार जाना मेरे नसीब में नहीं है। एक दफा हो आया इतना ही काफी है।
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इस जवाब से काका साहेब को दुख हुआ। वह चाहते थे कि बापू भी साथ आएं। बापू ने काका साहेब को नाराज देख कर गंभीरता से कहा, ''देखो, इतना बड़ा आंदोलन लिए बैठा हूं। हजारों स्वयंसेवक देश के कार्य में लगे हुए हैं। अगर मैं रमणीय दृश्य देखने का लोभ त्याग न सकूं, तो सबके सब स्वयंसेवक मेरा ही अनुकरण करने लगेंगे। अब हिसाब लगाओ कि इस तरह कितने लोगों की सेवा से देश वंचित हो जाएगा। मेरे लिए संयम रखना ही अच्छा है और यही मेरे लिए जरूरी भी है। बापू के तर्क से काका साहेब आश्वस्त हुए और समझ गए कि बापू के लिए निजी सुख एवं रमणीय दृश्यों के आनंद से ज्यादा जरूरी है देश।

Lata

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