Mahatma Buddha : "सहनशीलता का दम"

Tuesday, Nov 30, 2021 - 02:38 PM (IST)

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एक दिन भगवान बुद्ध के एक प्रिय शिष्य ने उनसे भिक्षाटन के लिए आज्ञा मांगी। मठ के सभी भिक्षुओं ने उन्हें आगाह करते हुए कहा कि गांव के बाहरी हिस्से में जो कर्कश एवं कृपण महाजन रहता है वहां न जाना। वहां अपशब्दों और तिरस्कार के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। आनंद यह सुनकर मुस्कुरा कर रह गए।

उन्होंने भी ठान लिया कि अब तो वहां अवश्य जाना है। शिष्य कई दिन तक निरंतर उसके यहां से अपशब्द सुनकर लौटता रहा मगर उन्होंने उस महाजन के यहां जाना नहीं छोड़ा। तंग आकर महाजन ने एक दिन शिष्य का पात्र सामने आते ही जमीन पर पड़ी धूल में से मु_ी भर कर पात्र में डाल दी। 

शिष्य ने वह पात्र ज्यों का त्यों लाकर भगवान बुद्ध के चरणों में अर्पित कर दिया। पात्र को देखते ही बुद्ध के चेहरे पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। सारे भिक्षु आश्चर्य में भरकर बुद्ध की ओर देखने लगे।

उनकी जिज्ञासा का निराकरण करते हुए महात्मा बुद्ध बोले, ‘‘भिक्षुओं इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। जिस आदमी ने कभी किसी को कुछ दिया न हो, आज उसने इस पात्र में कुछ अर्पण तो किया है। वह अभी देना सीखने की प्रक्रिया से गुजर रहा है। 

अपशब्दों के बाद आज पात्र में धूल ही सही कुछ तो भरा है। कल शायद इसमें कुछ उपयोगी वस्तु भी डाल ही देगा। मैं यही सोचकर प्रसन्न हो रहा हूं।’’ 

वास्तव में भिक्षुओं की सहनशीलता के सम्मुख नतमस्तक होकर अगले दिन उस महाजन ने भिक्षा पात्र को स्वादिष्ट पकवानों से भर दिया।

 

Jyoti

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