बेसब्री से कर रहे हैं अपनी शादी का इंतज़ार, आज ऐसे मनाएं भगवान शंकर को

Friday, Feb 21, 2020 - 03:50 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
महाशिवरात्रि यानि भोलेनाथ व पार्वती के मिलाप का दिन। शास्त्रों के अनुसार इस दिन शिव पार्वती का विवाह हुआ था। जिस कारण इस दिन का हिंदू धर्म में अधिक महत्व है। मान्यताओं की मानें को इस पावन दिन जो भी व्यक्ति भगवान शंकर व माता पार्वती की सच्चे दिल से अर्चना करता है उसकी जो भी कामना होती है वो पूरी हो जाती है। अब ये सुनते ही आप में से लगभग लोगों के मन में खुशी की लहर आ गई हो। हम जानते हैं आप में अधिकतर शिव जी से अपनी लोग किस कामना की पूर्ति चाहते हैं। तो आपको बता दें कि हम आपकी उस ही कामना को पूरा करवाने के लिए एक ऐसा उपाय लेकर आएं है। जिसे अगर आप ने इस शिवरात्रि अपना लिया तो हो सकता है आने वाले साल में आपकी शादी की शहनाईयां बज जाएं। तो अगर आप भी अपनी शादी का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं तो आज महाशिवरात्रि पर भगवान शंकर व उनकी अर्धागिंनी का ध्यान करते हुए इस स्तुति का पाठ ज़रूर करें। 

ऐसा कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को जीवन साथी के रूप में पाने के लिए लंबे समय तक शिव जी की पूजा आराधना के साथ-साथ इस स्तुति का पाठ किया था। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस शिवाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र के बारे में स्वयं भगवान श्री विष्णु ने जगतमाता पार्वती जी को बताया था। उसी के बाद शंकरप्रिया पार्वती ने एक वर्ष तक प्रतिदिन तीन समय (सुबह, दोपहर, शाम) में इसका पाठ किया था और फलस्वरूप उन्हें स्वंय महादेव पतिरूप (जीवन साथी) में प्राप्त हुए थे और वे शिव की अर्धांगिनी महाशक्ति बन गई। अगर मनचाहे जीवन साथी की तलाश कर रहे हो तो आज के दिन इस शिव स्तुति का पाठ जरूर करें।

।। अथ शिवाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् ।।
1- शिवो महेश्वर: शम्भु: पिनाकी शशिशेखर:।
वामदेवो विरुपाक्ष: कपर्दी नीललोहित:।।
शंकर: शूलपाणिश्च खट्वांगी विष्णुवल्लभ:।
शिपिविष्टोऽम्बिकानाथ: श्रीकण्ठो भक्तवत्सल:।।
2- भव: शर्वस्त्रिलोकेश: शितिकण्ठ: शिवाप्रिय:।
उग्र: कपालि: कामारिरन्धकासुरसूदन:।।
गंगाधरो ललाटाक्ष: कालकाल: कृपानिधि।
भीम: परशुहस्तश्च मृगपाणिर्जटाधर:।।

3- कैलासवासी कवची कठोरस्त्रिपुरान्तक:।
वृषांको वृषभारूढो भस्मोद्धूलितविग्रह:।।
सामप्रिय: स्वरमयस्त्रयीमूर्तिरनीश्वर:।
सर्वज्ञ: परमात्मा च सोमसूर्याग्निलोचन:।।
4- हविर्यज्ञमय: सोम: पंचवक्त्र: सदाशिव:।
विश्वेश्वरो वीरभद्रो गणनाथ: प्रजापति:।।
हिरण्यरेता दुर्धर्षो गिरीशो गिरिशोऽनघ:।
भुजंगभूषणो भर्गो गिरिधन्वा गिरिप्रिय:।।

5- कृत्तिवासा पुरारातिर्भगवान् प्रमथाधिप:।
मृत्युंजय: सूक्ष्मतनुर्जगद् व्यापी जगद्गुरु:।।
व्योमकेशो महासेनजनकश्चारुविक्रम:।
रुद्रो भूतपति: स्थाणुरहिर्बुध्न्यो दिगम्बर:।।
6- अष्टमूर्तिरनेकात्मा सात्त्विक: शुद्धविग्रह:।
शाश्वत: खण्डपरशुरजपाशविमोचक:।।
मृड: पशुपतिर्देवो महादेवोऽव्यय: प्रभु:।
पूषदन्तभिदव्यग्रो दक्षाध्वरहरो हर:।।

7- भगनेत्रभिदव्यक्त: सहस्त्राक्ष: सहस्त्रपात्।
अपवर्गप्रदोऽनन्तस्तारक: परमेश्वर:।।
एतदष्टोत्तरशतनाम्नामाम्नायेन सम्मितम्।
8- शंकरस्य प्रिया गौरी जपित्वा त्रैकालमन्वहम्।
नोदिता पद्मनाभेन वर्षमेकं प्रयत्नत:।।
अवाप सा शरीरार्धं प्रसादाच्छूंलधारिण:।
यस्त्रिसंध्यं पठेच्छम्भोर्नाम्नामष्टोत्तरं शतम्।।

9- शतरुद्रित्रिरावृत्त्या यत्फलं प्राप्यते नरै:।
तत्फलं प्राप्नुयादेतदेकवृत्त्या जपन्नर:।।
बिल्वपत्रै: प्रशस्तैर्वा पुष्पैश्च तुलसीदलै:।
तिलाक्षतैर्यजेद् यस्तु जीवन्मुक्तो न संशय।।
10- नाम्नामेषां पशुपतेरेकमेवापवर्गदम्।
अन्येषां चावशिष्टानां फलं वक्तुं न शक्यते।।

।। इति श्री शिव रहस्ये गौरीनारायणसंवादे शिवाष्टोत्तरशतदिव्य नामामृतस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

Jyoti

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