क्यों भोलेनाथ की पूजा में धतूरा, भांग व गंगा जल का होना है ज़रूरी?
Wednesday, Feb 05, 2020 - 12:59 PM (IST)
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यूं तो भोलेनाथ के भक्तों को अपने शिव शंभू की पूजा करने के लिए किसी खास दिन की ज़रूरत नहीं होती। मगर अगर बात महाशिवरात्रि की हो तो हर शिव भक्त के मन में इसकी इंतज़ार रहता ही है कि कब महाशिवरात्रि का ये पर्व आए और वो धूम-धाम से अपने भोलेनाथ की शादी मनाएं। कहा जाता है ये हिंदू धर्म का एक ऐसा त्यौहार है जिसमें बच्चे से लेकर बूढ़े तक मग्न हो जाते हैं। अब हो भी क्यों न। आख़िर मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शंकर दूल्गा बन अपने भूत-प्रेतों की बारात संग पार्वती माता को ब्याहने गए थे। मगर इस धूम-धाम में भोलेनाथ के कुछ भक्त ऐसे भी होते हैं जो भूल जाते हैं कि इनकी मस्ती में इतना खो जाते हैं कि इनकी विधिवत पूजा करना तो भूल ही जाते हैं। जो धार्मिक दृष्टि से लाभदायक नहीं होता। कहा जाता है इस दिन शिव शंकर की पूजा करना आवश्यक होता है।
ऐसा माना जाता है जो व्यक्ति इस दिन भोले भंडारी को प्रसन्न कर लेता है उस पर शंभू नाथ अपनी कृपा बरसाते हैं। अब ज़ाहिर सी बात है इतना तो सब ही जानते हैं भोलेनाथ को प्रसन्न करना सबसे सरल है क्योंकि शास्त्रों में इन्हें भोले-भाले कहा गया है इसलिए ये शीघ्र ही अपने भक्तों खुश हो जाते हैं। परंतु वहीं कोई अगर इनकी पूजा में इन्हे अर्पित की जाने वाली सबसे विशेष चीज़ें भूल जाता है तो शिव जी उस पर गुस्सा भी हो सकते हैं। तो आइए जानते हैं इस दिन की जाने वाली इनकी सबसे सरल पूजन विधि के बारे में-
शिव पुराण में भगवान शिव को नीलकंठ कहा गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सागर मंथन के समय भगवान भोलेनाथ ने उससे उत्पन्न होने वाले हालाहल विष को पीकर सृष्टि को तबाह होने से बचाया था। जिस कारण विष पीने के बाद भगवान शिव का गला नीला पड़ गया क्योंकि इन्होंने विष को अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि विष भगवान शिव के मस्तिष्क पर चढ़ गया और भोलेनाथ अचेत हो गए। ऐसी स्थिति में देवताओं के सामने भगवान शिव को होश में लाना एक बड़ी चुनौती बन गई। देवी भाग्वत पुराण के अनुसार इस स्थिति में आदि शक्ति प्रकट हुई और भगवान शिव का उपचार करने के लिए जड़ी बूटियों और जल से शिव जी का उपचार करने के लिए कहा।
भगवान शिव के सिर से हालाहल की गर्मी को दूर करने के लिए देवताओं ने उनके सिर पर धतूरा, भांग रखा और निरंतर जलाभिषेक किया। जिसके बाद शिव जी के सिर से विष का दूर हो गया। कहा जाता है इसके बाद से ही भगवान शिव को धतूरा, भांग और जल चढ़ाया जाने लगा। हिंदू शास्त्रों में बेल के तीन पत्तों को रज, सत्व और तमोगुण का प्रतीक माना गया है साथ ही इसे यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना गया है।