Mahashivratri 2022: जानें, महाशिवरात्रि का महत्व और भगवान शिव का परिचय

Tuesday, Mar 01, 2022 - 08:34 AM (IST)

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Mahashivratri 2022: हर महीने कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर शिवरात्रि होती है। इस दिन भगवान शिव को श्रद्धा से भक्त कुछ भी अर्पित करते हैं तो उनसे मनचाहा वरदान प्राप्त कर लेते हैं। फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर महाशिवरात्रि का त्यौहार बहुत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन किया शिव पूजन बहुत ही महत्व रखता है। मात्र एक दिन की पूजा से जन्मों के पाप नाश हो जाते हैं।

भगवान शिव का परिचय
शिव पुराण में प्रमुख रुप से शिव भक्ति और शिव महिमा का विस्तार से वर्णन है। लगभग सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनवांछित फ़ल देने वाले देव हैं।

भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है। शिवोपासना को अत्यंत सरल कहा गया है। अन्य देवताओं की भांति भगवान शिव को सुंगधित पुष्प मालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती।शिव तो स्वचछ जल, बिल्वपत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल-धूतरा आदि से प्रसन्न हो जाते हैं। शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता नहीं है। वह तो अघोड़ बाबा हैं। जटाजुट धारी, गले में लिपटे नाग और रूद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशुल पकड़े हुए हैं। वे सारे विश्व को अपनी पद चाप तथा डमरु की कर्ण भेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं। इसलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से जीवन और मृत्यु का बोध होता है।

शीश पर गंगा और चंद्र देव जीवन और कला के प्रतीक हैं। शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अंत में मृत्यु सागर में लीन हो जाती है। गले में नागों के राजा वासुकि को उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर धारण किया और उनके गणों में नंदी बैल हैं। वो भी उनके परम भक्त हैं। शिव जी अपने भक्तों के प्रति प्रेम के प्रतीक हैं और वासुकि नाग को मेरु पर्वत के चारों ओर रस्सी की तरह बांधकर जब संमुद्र मंथन किया गया तो उसमें से जो विष निकला उस विष को पीकर अपने कंठ में रखा। ये शिव के त्याग का प्रतीक है।

तभी तो महाशिवरात्रि पर व्रत रखना बहुत शुभ माना गया है। अपनी श्रद्धा अनुसार ऊपर लिखी वस्तुओं का भोग लगाएं लेकिन इसके साथ दूध, दही, शहद, घृत और गन्ने का रस मिलाकर बनाया हुआ पंचामृत स्नान कराके चम्पक, पाटल, कनेर, मल्लिका तथा कमल के पुष्प भी चढ़ाएं। फ़िर धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल अर्पित करें। इससे शिव प्रसन्न हो जाते हैं।

आशू मल्होत्रा
ashumalhotra629@gmail.com

Niyati Bhandari

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