गुरु पूर्णिमा पर जानें, महर्षि वेदव्यास से जुड़ी ये पौराणिक कथा

Monday, Jul 15, 2019 - 11:38 AM (IST)

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आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का विशेष पर्व मनाया जाता है और इस बार यह 16 जुलाई दिन मंगलवार को पड़ रही है। इस दिन शिष्य अपने गुरु की पूजा करते हैं और उन्हें उपहार भी देते हैं। हमारी भारतीय संस्कृति में गुरु को देवता के समान तुल्य माना गया है। आज हम आपको इस विशेष दिन पर महर्षि वेद व्यास के बारे में एक पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते होंगे। 

महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। बहुत से लोग इस दिन व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। 

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में महर्षि पराशर भ्रमण के लिए निकले थे और जहां उनकी नजर एक स्त्री पर पड़ी, जिसका नाम सत्यवती था। मछुआरे की पुत्री सत्यवती दिखने में बहुत सुंदर और आकर्षक थी। सत्यवती दिखने में तो बहुत आकर्षक थी लेकिन उसके शरीर से मछली की गंध आती थी, जिसकी वजह से सत्यवती को मतस्यगंधा भी कहा जाता था। सत्यवती को देखकर ही पराशर ऋषि का मन विचलित और व्याकुल हो गया। ऋषि ने सत्यवती से प्यार करने की इच्छा जताई, लेकिन सत्यवती ने इस बात को टाल दिया। कहने लगी कि मैं इस तरह के संबंध से होने वाली संतान को जन्म नहीं दे सकती। लेकिन पराशर ऋषि नहीं मानें उन्होंने सत्यवती से निवदेन किया। उसके बाद सत्यवती ने उनके सामने तीन शर्तें रखी। 

पहली शर्त कि संभोग क्रीडा करते वक्त कोई न देखे। दूसरी बात उसकी कौमार्यता कभी भी भंग न हो। तीसरी बात उसके शरीर में से आने वाली मछली की महक के स्थान पर फूलों की सुंगध में परिवर्तित हो जाए। ऋषि ने उसकी सारी बातों को मानकर संभोग किया। 

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समय आने पर सत्यवती को एक पुत्र हुआ, जिसका नाम कृष्णद्वैपायन रखा। यही कृष्ण आगे चलकर वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। महाभारत काल में मां के कहने पर महर्षि वेदव्यास ने विचित्रवीर्य की रानियों के साथ एक दासी के साथ भी नियोग किया। जिसके बाद जिसके बाद पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर का जन्म हुआ।

वेदों के विस्तार के कारण ये वेदव्यास के नाम से जाने जाते हैं। वेद व्यास ने चारो वेदों के विस्तार के साथ-साथ 18 महापुराणों तथा ब्रह्मसूत्र का भी प्रणयन किया। महर्षि वेदव्यास महाभारत के रचयिता हैं, बल्कि वह उन घटनाओ के भी साक्षी रहे हैं, जो उस समय घटित हुई हैं।

Lata

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