Maharana Pratap Birth Anniversary: अकबर के घमंड को चूर करने वाले महाराणा प्रताप की जयंती पर उनको शत-शत नमन
punjabkesari.in Sunday, Jun 09, 2024 - 11:09 AM (IST)

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Maharana Pratap Jayanti: राजस्थान भारत की वीर प्रसूता भूमि है। यह रणबांकुरों की जन्मस्थली मानी जाती है। महाराणा प्रताप का जन्म सिसौदिया राजपूत वंश में ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया 1540 ईस्वी को मेवाड़ के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ। इनके पिता राणा उदयवीर व माता जयंताबाई थी। बचपन से ही महाराणा प्रताप ने युद्ध कौशल के गुणों में निपुणता प्राप्त कर ली थी। उदय सिंह की मृत्यु के पश्चात राजपूत सरदारों ने मिलकर 1 मार्च, 1576 को महाराणा प्रताप को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया।
मुगलों के आतंक से अपनी मातृभूमि की रक्षा करने का महान दायित्व महाराणा के ऊपर आ गया। चारों तरफ विषम परिस्थितियों के बीच भी प्रताप ने कभी स्वयं को असहाय अनुभव नहीं किया। महाराणा प्रताप का नाम लेते ही मुगल साम्राज्य को चुनौती देने वाले वीर योद्धा का चित्र आंखों के सामने आ जाता है। महाराणा प्रताप का जीवन त्याग, संघर्ष व बलिदान की स्वर्णिम गाथा है। विश्व विख्यात हल्दीघाटी का युद्ध 1576 में अकबर और महाराणा के बीच हुआ।
इस युद्ध में अकबर की 85,000 विशाल सैनिकों की सेना का प्रताप के 20,000 रणबांकुरों ने मुंह तोड़ जवाब दिया। इतिहासकार कहते हैं कि इतनी विशाल सेना के होते हुए भी हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही महाराणा प्रताप हारे।
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने विजय पताका फहराए जाने तक जंगलों में रहने का प्रण लिया। इस युद्ध में महाराणा प्रताप के सर्वश्रेष्ठ घोड़े चेतक की वीरता भी स्मरणीय है। हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक मुगल सेनापति के हाथी की ऊंचाई तक बाज की तरह उछल पड़ा था। स्वामी भक्त चेतक ने अपने प्राणों की आहुति देकर 26 फुट लंबे नाले से छलांग लगाकर महाराणा की रक्षा की थी।
अक्तूबर 1582 में देवर छापली का भीषण महासंग्राम महाराणा और अकबर के बीच हुआ। विजयदशमी के दिन इस युद्ध में महाराणा ने मुगलों का मनोबल पूरी तरह से तोड़ दिया था। दिवेर, छापली के युद्ध में महाराणा को विजय एवं यश दोनों प्राप्त हुए। इसी युद्ध में महाराणा के पुत्र अमर सिंह ने पराक्रम दिखाते हुए मुगल सेनापति सुल्तान खान को मौत के घाट उतारा।
महाराणा प्रताप ने इस युद्ध में अपनी तलवार के एक वार से मुगल सेनापति बहलोल खान को घोड़े सहित दो भागों में चीर दिया था। इतिहासकारों के अनुसार इस युद्ध में 36000 मुगल सैनिकों ने प्रताप के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। इतिहासकार विजय नाहर की पुस्तक हिंदूवा सूर्य महाराणा में बताया गया है कि प्रताप अकबर से कभी नहीं हारा। वे लिखते हैं कि शाहबाज के नेतृत्व में अकबर ने तीन बार सेना भेजी, परंतु असफल रहा। अब्दुल रहीम खानखाना को भी महाराणा ने बुरी तरह से भगाया था। अकबर महाराणा के पराक्रम से इतना घबरा गया था कि उसने छह बार अपने दूत को प्रताप के पास समझौते के लिए भेजा।
भारतीय इतिहास में राजपूताने का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। महाराणा प्रताप ने जाति, धर्म, स्वाधीनता की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने में जरा भी संकोच नहीं किया। मुगल दरबार के कवि अब्दुल रहमान ने महाराणा के फौलादी व्यक्तित्व के बारे में लिखा है कि ‘‘इस दुनिया में सभी भौतिक सुख-सुविधाएं नष्ट होने वाली हैं, लेकिन महान इंसान के गुण हमेशा ही जीवित रहेंगे। प्रताप ने धन-दौलत को ठोकर मारी, परंतु अपना स्वाभिमान गिरवी नहीं रखा।
’’ अकबर का दरबारी कवि पृथ्वीराज राठौड़ भी महाराणा की वीरता का प्रशंसक था।
महाराणा को 16वीं शताब्दी के महान हिंदू राजा के रूप में याद किया जाता है। महाराणा ने मुगलों को कई युद्धों में हराया। महाराणा प्रताप के भाले का वजन 81 किलो तथा छाती के कवच का वजन 72 किलो था। इतिहासकारों ने महाराणा को सबसे बड़ा राजपूत राजा माना है। कर्नल टॉड ने महाराणा को ‘मेवाड़ का मैराथन’ कहते हुए लिखा है कि प्रताप की सेना युद्ध के मैदान में अपने से 4 गुना शक्तिशाली शत्रु से भी नहीं डरती।
महाराणा प्रताप संस्कृति, धर्म तथा अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए हिंसा को सही मानते थे। अपने मेवाड़ के लिए उन्होंने अपना तन-मन-धन सब कुछ न्यौछावर करते हुए कहा था कि, ‘‘मंजूर घास की रोटी है घर चाहे नदी पहाड़ रहे, अंतिम सांस तक चाहूंगा स्वाधीन मेरा मेवाड़ रहे।’’
दुर्भाग्य है हमारे देश का कि कुछ खोखले विचारकों ने क्रूर नरसंहारक अकबर को महान बना दिया जबकि अपनी संस्कृति और मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रताप के बलिदान को विस्मृत कर दिया। सम्पूर्ण भारत के लिए महाराणा का चरित्र ऊर्जा, उत्साह एवं स्वाभिमान का संचार करने वाला है।