महाराजा अग्रसेन के राज में सब ‘दाता’

Sunday, Sep 29, 2019 - 12:45 PM (IST)

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समाजवाद के अग्रदूत माने गए महाराजा अग्रसेन को हजारों वर्ष पूर्व से एक निष्काम कर्म योगी के रूप में देखा गया है जिन्होंने अपनी दूरदृष्टि के फलस्वरूप बाल्यकाल से ही अनगिनत विषमताओं से जूझते हुए समाज के नवनिर्माण की नींव रखी।

अहिंसा के पुजारी और शांतिदूत महाराजा अग्रसेन का जन्म प्रताप नगर के राजा वल्लभ के गृह में लगभग 5100 वर्ष पूर्व हुआ। महालक्ष्मी के आशीर्वाद का कवच पहनकर अग्रसेन ने समूचे भारतवर्ष की यात्रा की और अग्रोहा में आकर अपना राज्य स्थापित कर अपनी राजधानी बनाया। 

अग्रोहा के सुनियोजित विकास व उत्तरोत्तर बढ़ती समृद्धि के कारण लोगों का आकर्षण अग्रोहा की तरफ बढ़ा। व्यापार, कृषि व उद्योग की वृद्धि से अग्रोहा व महाराजा अग्रसेन की कीर्ति चारों ओर फैलने लगी। दूर-दूर से लोग अग्रोहा में बसने के लिए आने लगे। 

इन्होंने समानता, भाईचारे एवं आपसी सहयोग के सिद्धांतों को स्थापित करके ‘एक मुद्रा एक ईंट’ जैसे महान समाजवादी सिद्धांत का श्रीगणेश किया जिसके समान विश्व में कहीं भी उदाहरण देखने को नहीं मिलता। उस समय अग्रोहा नगर की  लगभग एक लाख घरों की जनसंख्या थी। नगर पूर्ण वैभवशाली था। यहां सभी लोग अत्यंत समृद्धशाली और समाज हितैषी थे। 

जब भी कोई नया बंधु यहां बसने के लिए आता था तो यहां का प्रत्येक परिवार उसे एक मुद्रा और एक ईंट सम्मानपूर्वक भेंट करता था। एक लाख मुद्राओं से वह अपना व्यापार चला लेता था और एक लाख ईंटों से अपना घर बना लेता था। इस प्रकार सहयोग और समानता की भावना पर आधारित होने के कारण किसी प्रकार की हीनता या छोटे बड़े की भावना पैदा ही नहीं होती थी। सभी समान रूप से दाता भी थे एवं ग्रहणकर्ता भी थे। समाज में समानता लाने तथा वैभव को बांटने का उक्त प्रयास इतिहास में अनुपम है।

महाराजा अग्रसेन ने जीवन में कर्म को प्रधानता दी। उनका मानना था कि परिश्रम द्वारा सम्पन्न व्यक्ति ही अपने परिवार, समाज, देश एवं मानवता का भला कर सकता है और उत्पादन द्वारा ही हम रोजगार के साधन पैदा कर सकते हैं व रोजगार ही देश की समृद्धि का कारण होता है। सम्पूर्ण समाज का आह्वान करते हुए उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर अपना मार्ग-प्रशस्त करने का संदेश दिया व समाज के कमजोर एवं जरूरतमंद परिवारों को साथ लेकर चलने का पाठ पढ़ाया।


महाराजा अग्रसेन जी के आदर्शों का निर्वाहन करते हुए अग्र बन्धुओं ने समाज, देश और मानवता के प्रति अत्यंत सकारात्मक भूमिका अदा करते हुए देश में हजारों स्कूल, कॉलेज, धर्मशालाएं, अस्पताल, मन्दिर, गौशालाएं, अनाथालय, तालाब और कुओं का निर्माण करवाया।

आज अग्रवाल समाज का लगभग 40 प्रतिशत वर्ग आर्थिक दृष्टि से कमजोर है। इनमें से लगभग 20 प्रतिशत लोग तो ऐसे हैं जिनकी हालत अत्यंत दयनीय है। ये लोग छोटी-मोटी नौकरी करके जीवनयापन करने पर मजबूर हैं। 

समाज का निर्धन वर्ग अपने सम्पन्न भाइयों से आशा करता है कि वे अपने कमजोर अग्र बन्धुओं को शिक्षा, रोजगार व मूल सुविधाओं को प्राप्त करने में सहायता करें। आज अग्र बंधुओं में निश्चित ही समाज के कमजोर व जरूरतमंद लोगों की सहायता करने की भावना ने अपना स्थान बनाया है तथा वैश्य समाज से अधिकतर सेवा एवं योगदान समाज को प्राप्त होता है।

हमारे देश में शिक्षा संस्थानों, व्यापारों व औद्योगिक इकाईयों का बड़ा हिस्सा अग्र बन्धुओं का ही है। सम्पन्न वैश्यों का दायित्व बनता है कि वे आर्थिक दृष्टि से पिछड़े अपने भाइयों के लिए नि:शुल्क शिक्षा का प्रबन्ध करें और अपने प्रतिष्ठानों में उन्हें उनकी योग्यता के आधार पर रोजगार भी उपलब्ध करवाएं।

नि:संदेह महाराजा अग्रसेन द्वारा रोपित विचार-बीज ने आज वटवृक्ष का रूप धारण कर लिया है। इसके पीछे महाराजा अग्रसेन जी द्वारा बताए गए सत्य, अहिंसा, समानता व अपनत्व के भाव निहित हैं। आज अग्रवाल समाज को पूरे विश्व में एक श्रेष्ठ समुदाय के रूप में गिना जाता है। 

देश की लगभग 50 प्रतिशत से अधिक योजनाओं में अग्र बन्धुओं का सक्रिय योगदान है तथा अग्र बन्धु ही सबसे अधिक टैक्स का योगदान राष्ट्रीय खजाने में देते हैं। 

देश के स्वाधीनता आन्दोलन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ-साथ लाला लाजपत राय, सेठ हरदयाल, सेठ जमना दास बजाज, सेठ घनश्याम दास बिड़ला, सेठ चन्द्र भानु गुप्ता व सेठ भगवानदास आदि हजारों अग्रबन्धुओं ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था।

अग्रवाल समाज में देश व समाज के प्रति आज भी सेवा एवं सद्भाव की भावना विद्यमान है। 

अत: महाराजा अग्रसेन के वंशजों का यह नैतिक दायित्व है कि वे आज विकट परिस्थितियों का सामना कर रहे भारत वर्ष के पुनरुत्थान व नवनिर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान दें और अग्रपुरूष अग्रसेन जी के समानता, सहयोग एवं सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का दृढ़ता से पालन करें। 
 

Jyoti

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