श्रावण मास में ज़रूर करें शिव जी के इस सर्वशक्तिशाली मंत्र का जप, रोग-दोष होंगे दूर

Thursday, Jul 28, 2022 - 09:30 AM (IST)

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शिव जी एक ऐसे देव माने जिनको प्रसन्न करना है बेहद ही आसान । उनकी कृपा मात्र से ही दुखों का नाश हो जाता है। अगर उनको एक फूल भी अर्पित कर दिया जाए तो वे उससे भी खुश हो जाते हैं। अतः इनकी उपासना करने वाले व्यक्ति के जीवन की समस्त समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। तो वहीं ज्योतिष शास्त्र में इन्हें प्रसन्न करने के कई उपाय आदि बताए गए हैं जिसमें इन्हें क्या अर्पित करना चाहिए, किस चीज़ का भोग लगाना चाहिए, कौन सा तिलक लगाना चाहिए तथा किन मंत्रों का जप करना चाहिए तक बखूबी वर्णन किया गया है। थोड़ा विस्तार में बताएं तो शिव जी को प्रसन्न करने के जहां उनके प्रिय फूल-पत्ते, भांग, धतुरा आदि ऐसी चीजें उपयोगी मानी जाती है तो वहीं इनके साथ-साथ मंत्र जप अधिक आवश्यक माना गया है। कहा जाता है इनसे जुड़े मंत्रों का जप करने वाले व्यक्ति पर भोलेनाथ की असीम कृपा प्राप्त होती है। तो शिवपुराण में शिव जी को समर्पित ऐसे बहुत से मंत्र बताए गए हैं, जो हमें शांति प्रदान करते हैं। तो चलिए जानते हैं कौन से हैं ये अद्भुत व चमत्कारी मंत्र- 

ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः 
शिव पुराण में किए उल्लेख के अनुसार उपरोक्त मंत्र को रुद्र मंत्र के नाम से जाना जाता है, मान्यता है इस मंत्र का जप करने से तमाम तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 
इस मंत्र को रुद्र मंत्र कहा जाता है। मान्यता है कि ये मंत्र शिव जी तक आपकी सभी मनोकामनाएं पहुंचाता है।  

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि 
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्! 

ऊपर दिए मंत्र को शिव पुराण में गायत्री मंत्र के नाम से जाना जाता है। बता दें जो सर्वशक्तिशाली कहलाता है जिसका जप करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।


महामृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ !!
 

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महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ-
त्रयंबकम- त्रि.नेत्रों वाला; कर्मकारक।
यजामहे- हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं। हमारे श्रद्धेय।
सुगंधिम- मीठी महक वाला, सुगंधित।
पुष्टि- एक सुपोषित स्थिति, फलने वाला व्यक्ति। जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम- वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य,धन,सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली।
उर्वारुकम- ककड़ी (कर्मकारक)
इव- जैसे, इस तरह।
बंधना-  तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति - वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)।
मृत्युर- मृत्यु से
मुक्षिया- हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
मा- न 
अमृतात- अमरता, मोक्ष।

अर्थात:- इस मंत्र का अर्थ ये है कि संपूर्ण पृथ्वी को चलाने वाले देव कोई और नहीं भगवान शंकर ही हैं। त्रिनेत्रधारी भगवान शिव ही प्रत्येक जीव को स्वास प्रदान करते हैं, शक्ति देते हैं, वे ही पूरी सृष्टी का पालन-पोषण करते हैं तथा विश्व में सुख-शांति देकर व्यक्ति के मन से मृत्यु के भय का नाश करते हैं।
 

Jyoti

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