इस मंदिर में माता लक्ष्मी का मुख है पश्चिम दिशा की ओर, जानिए इसका रहस्य

Thursday, Oct 24, 2019 - 01:29 PM (IST)

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दिवाली का पर्व हिंदू धर्म में बहुत ही खास होता है। इस पर्व की तैयारियां लोग महीना पहले से ही करनी शुरू कर देते हैं। इस दिन लोग अपने घरों को बहु ही अच्छे से सजाते हैं और साथ ही पूरे घर को दीयों से रोशन करते हैं। इस विशेष दिन पर माता लक्ष्मी की पूजा का विधान होता है। कहते हैं कि जो घर बहुत ही सुंदर व साफ हो वहां मां हमेशा के लिए निवास करती हैं। वैसे तो माता लक्ष्मी के कई मंदिर हमारे देश में स्थापित हैं, लेकिन आज हम उनके एक ऐसे मंदिर के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो अपने आप में ही प्राचीन है। 

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी मंदिर देश के प्रमुख मंदिरों में एक माना जाता है। कहते हैं कि यहां साल में दो बार सूर्य की किरणें मां लक्ष्मी के विग्रह पर सीधी पड़ती है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य की किरणें माता के चरणों को स्पर्श करती हुई उनके मुखमंडल तक आती हैं। इस स्थान की एक खास बात ओर भी हैं कि यहां की एक दीवार पर श्री यंत्र पत्थर पर खोदकर बनाया गया है। आगे जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ ओर रोचक बातों को। 

मंदिर में माता लक्ष्मी की मूर्ति के प्रत्येक हिस्से पर सूर्य की किरणें अलग-अलग दिन दर्शन करती हैं। मंदिर की पश्चिमी दीवार पर एक खिड़की है जिसमें से सूर्य की रोशनी आती है और माता की मूर्ति को स्पर्श करती है। रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव माता लक्ष्मी के चरण छूते हैं। अधिकतर मंदिरों में देवी-देवता पूर्व या उत्तर दिशा की ओर देख रहे होते हैं लेकिन इस मंदिर में माता लक्ष्मी का चेहरा पश्चिम दिशा की तरफ है। इस मंदिर में जो भक्त इच्छा लेकर आता है वो पूर्ण हो जाती है। इस मंदिर को अम्बा माता का मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां पर माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ निवास करती हैं। दिवाली के खास मौके पर मंदिर को बेहद खूबसूरत तरीके से सजाया जाता है। 

इस मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में चालुक्य वंश के राजा कर्णदेव ने कराया था। बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण अधुरा रह गया था, जिसे 9वीं शताब्दी में पूरा किया गया था। यह मंदिर 27 हजार वर्ग फुट में फैला हुआ है। मंदिर करीब 45 फीट ऊंचा है। इस मंदिर में स्थापित माता लक्ष्मी की मूर्ति 4 फीट ऊंची है, जोकि करीब 7 हजार वर्ष पुरानी है। आदि गुरु शंकराचार्य ने माता लक्ष्मी की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा की थी।

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