Monday special: कथा पुराणों से जानें, भोले बाबा क्यों कहलाए महाकाल

Monday, Sep 19, 2022 - 11:48 AM (IST)

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Mahakaleshwar Jyotirlinga Madhya Pradesh Ujjain: देश के अलग-अलग भागों में स्थित भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंग में श्री महाकालेश्वर एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग है। इन्हें द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक कहा जाता है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप समाप्त हो जाते हैं। वे भगवान शिव की कृपा के पात्र बनते हैं। यह परम पवित्र ज्योर्तिलिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में है। पुण्यसलिला क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जैन प्राचीन काल में उज्जयिनी के नाम से विख्यात था, इसे अवंतिकापुरी भी कहते थे। यह भारत की परम पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। महाभारत, शिव पुराण और स्कंद पुराण में महाकाल ज्योतिर्लिंग की महिमा का पूरे विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। 
 

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Mahakaleshwar mandir story: इस ज्योतिर्लिंग की कथा पुराणों में इस प्रकार वर्णित है- प्राचीन काल में उज्जयिनी में राजा चंद्रसेन राज्य करते थे। वह परम शिव भक्त थे। एक दिन श्रीकर नामक पांच वर्ष का एक गोप-बालक अपनी मां के साथ उधर से गुजर रहा था। राजा का शिव पूजन देखकर उसे बहुत विस्मय और कौतूहल हुआ। वह स्वयं उसी प्रकार की सामग्रियों से शिव पूजन करने के लिए लालायित हो उठा। सामग्री का साधन न जुट पाने पर लौटते समय उसने रास्ते से एक पत्थर का टुकड़ा उठा लिया। घर आकर उसी पत्थर को शिव रूप में स्थापित कर पुष्प, चंदन आदि से परम श्रद्धा पूर्वक उसकी पूजा करने लगा। माता भोजन करने के लिए बुलाने आई, किंतु वह पूजा छोड़कर उठने के लिए किसी भी प्रकार तैयार नहीं हुआ। 
 
  
अंत में माता ने झल्लाकर पत्थर का वह टुकड़ा उठाकर दूर फेंक दिया। इससे दुखी होकर वह बालक जोर-जोर से भगवान शिव को पुकारता हुआ रोने लगा और अंतत: रोते-रोते बेहोश होकर वहीं गिर पड़ा। बालक की अपने प्रति यह भक्ति और प्रेम देख कर भोलेनाथ भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। बालक ने जैसे ही होश में आकर अपने नेत्र खोले तो उसने देखा कि उसके सामने एक बहुत ही भव्य और अति विशाल स्वर्ण और रत्नों से बना हुआ मंदिर खड़ा है। उस मंदिर के अंदर एक बहुत ही प्रकाश पूर्ण, भास्वर, तेजस्वी ज्योर्तिलिंग खड़ा है। बच्चा प्रसन्नता और आनंद से विभोर होकर भगवान शिव की स्तुति करने लगा।  

माता को जब यह समाचार मिला तब दौड़कर उसने अपने प्यारे लाल को गले से लगा लिया। पीछे राजा चंद्रसेन ने भी वहां पहुंच कर उस बच्चे की भक्ति और सिद्धि की बड़ी सराहना की। धीरे-धीरे वहां बड़ी भीड़ जुट गई। इतने में उस स्थान पर हनुमान जी प्रकट हो गए। उन्होंने कहा, ‘‘मनुष्यो ! भगवान शंकर शीघ्र फल देने वाले देवताओं में सर्वप्रथम हैं। इस बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्होंने इसे ऐसा फल प्रदान किया है, जो बड़े-बड़े ऋषि-मुनि करोड़ों जन्मों की तपस्या से भी प्राप्त नहीं कर पाते।’’ 
 

‘‘इस गोप-बालक की आठवीं पीढ़ी में धर्मात्मा नंद गोप का जन्म होगा। द्वापरयुग में भगवान विष्णु कृष्ण अवतार लेकर उनके वहां तरह-तरह की लीलाएं करेंगे।’’ 
 

हनुमान जी इतना कहकर अंतर्ध्यान हो गए। उस स्थान पर नियम से भगवान शिव की आराधना करते हुए अंत में श्रीकर गोप और राजा चंद्रसेन शिव धाम को चले गए। 
 

इस ज्योतिर्लिंग के विषय में एक दूसरी कथा इस प्रकार कही जाती है- किसी समय अवंतिकापुरी में वेदपाठी तपोनिष्ठ एक अत्यंत तेजस्वी ब्राह्मण रहते थे। एक दिन दूषण नामक एक अत्याचारी असुर उनकी तपस्या में विघ्न डालने के लिए वहां आया। ब्रह्मा जी से वर प्राप्त कर वह बहुत शक्तिशाली हो गया था। उसके अत्याचार से चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। 
 

ब्राह्मण को कष्ट में पड़ा देखकर प्राणीमात्र का कल्याण करने वाले भगवान शंकर वहां प्रकट हो गए। उन्होंने एक हुंकार मात्र से उस दारुण अत्याचारी दानव को वहीं जलाकर भस्म कर दिया। भगवान वहां हुंकार सहित प्रकट हुए इसलिए उनका नाम महाकाल पड़ गया। इसीलिए परम पवित्र ज्योर्तिलिंग को ‘महाकाल’ के नाम से जाना जाता है।  
 

Niyati Bhandari

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