रविवार बन रहा है शुभ संयोग, महापुण्य कमाने का सुनहरी मौका

Saturday, Dec 24, 2016 - 04:06 PM (IST)

अखिल भारतीय श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के वर्तमान आचार्य श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज बताते हैं कि एकादशी व्रत आदि भक्ति साधनाअों का असली उद्देश्य राज्य, सुंदर स्त्री या सुंदर पति अथवा आज्ञाकारी पुत्र प्राप्त करना नहीं है। एकादशी व्रत का असली उद्देश्य तो भगवान श्रीहरि की अद्वैत भक्ति प्राप्त करना है जोकि हर प्राणी का सर्वोत्तम मकसद है। भगवान से भगवान की सेवा मांगने से जीव का जीवन व उसकी एकादशी व्रत आदि करने की साधना परिपूर्ण रुप में सफल होती है। 


एकादशी व्रत के प्रसंगों में अष्टद्वादशी व्रत कथा को विशेष भाव से जानना चाहिए। ब्रह्मवैवर्त्त पुराण के अनुसार उन्मीलनी, व्यंजुली, त्रिस्पर्शा, पक्षवर्द्धिनी, जया, विजया, जयन्ती व पापनाशिनी ये आठ महाद्वादशी महापुण्य स्वरूपिणी व सर्व-पापहारिणी है। इनमें से पहली चार तिथियों के अनुसार व बाद की चार नक्षत्र योग के अनुसार घटित होती है। जैसे द्वादशी तिथि में जब दो सूर्योदय आ जाए तो व्यंजुली महाद्वादशी कहलाती है। इसी प्रकार अगर अमावस्या अथवा पूर्णिमा में दो सूर्योदय आ जाए तो वह पक्षवर्द्धिनी महाद्वादशी कहलाती है। जब इन आठों महाद्वादशियों में से कोई भी आती है तो भक्त लोग इस तिथि को अधिक महत्व देते हुए इसका सम्मान करते हैं। 


कल 25 दिसंबर रविवार को व्यंजुली महाद्वादशी का शुभ संयोग बन रहा है। जब एकादशी वृद्धि न पाय परन्तु द्वादशी वृद्धि पाय, तब यह व्यंजुली महाद्वादशी कहलाती है। यह महाद्वादशी सम्पूर्ण पापों का नाश कर देती है। शुद्ध भक्तगण अपनी इन्द्रियों की इच्छापूर्ति की इच्छा न करके, श्रीकृष्ण की प्रसन्नता व श्रीकृष्ण की इच्छा को पूरा करने के लिये, व शुद्ध भक्ति के प्रेम-फल की प्राप्ति के लिये ये व्रत करेंगे। इन अष्ट द्वादशी व्रत के उपस्थित होने पर शुद्ध भक्तगण एकादशी उपवास न कर, इन सब महाद्वादशी व्रत का ही पालन करेंगे। इस व्रत का पालन करने से ही एकादशी का सही व्रत होता है व श्रीहरि प्रसन्न होते हैं।


श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com

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