महाभारतः दुख हो या सुख इंसान को रहना चाहिए हमेशा एक समान

Sunday, Jul 28, 2019 - 11:40 AM (IST)

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महाभारत का युद्ध एक ऐतिहासिक युद्ध रहा है और यह कुरुक्षेत्र की पावन धरती पर लड़ा गया था। महाभारत में कई ऐसे प्रसंग भी हुए हैं, जिन्हें आज भी अगर याद किया जाए तो मन भर आता है। द्वापर युग में कौरव और पांडवों के बीच महाभारत युद्ध हुआ था। कौरव अधर्मी थे, जबकि पांडव धर्म के मार्ग पर चल रहे थे, इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने भी पांडवों का ही साथ दिया था। महाभारत में कई ऐसी नीतियां बताई गई हैं, जिन्हें अगर व्यक्ति अपने जीवन में अपना ले तो उसकी बहुत सारी परेशानियों का हल निकल सकता है।

श्लोकः
दु:खैर्न तप्येन्न सुखै: प्रह्रष्येत् समेन वर्तेत सदैव धीर:।
दिष्टं बलीय इति मन्यमानो न संज्वरेन्नापि ह्रष्येत् कथंचित्।।

महाभारत के आदिपर्व का श्लोक है। इसके अनुसार हमें बुरे समय में यानि कठिनाइयों से दुखी नहीं होना चाहिए। जब सुख के दिन हों तब भी हमें हर्षित नहीं होना चाहिए। सुख हो या दुख, हमें हर हाल में समभाव यानि एक समान रहना चाहिए। जो लोग इस नीति का पालन करते हैं, वे ही धीर पुरुष यानि समझदार इंसान कहलाते हैं। ऐसे लोग भाग्य को प्रबल मानते हैं और किसी भी तरह का तनाव या प्रसन्नता के वशीभूत नहीं होते हैं।

एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार एक आश्रम में किसी व्यक्ति ने गाय का दान किया। जब ये बात आश्रम के शिष्य को पता चली तो वह बहुत खुश हुआ और उसने अपने गुरु को ये बात बताई तो गुरु ने सामान्य स्वर में कहा कि चलो अच्छा है, अब हमें रोज ताजा दूध मिलेगा।

कुछ दिन तक तो गुरु-शिष्य को रोज़ ताजा दूध मिला, लेकिन एक दिन वह दानी व्यक्ति आश्रम में आया और अपनी गाय वापिस ले गया। ये देखकर शिष्य दुखी हो गया। उसने गुरु से दुखी होते हुए कहा कि गुरुजी वह व्यक्ति गाय को वापस ले गया है। गुरु ने कहा कि चलो अच्छा है, अब गाय का गोबर और गंदगी साफ नहीं करनी पड़ेगी। ये सुनकर शिष्य ने पूछा कि गुरुजी आपको इस बात से दुख नहीं हुआ कि अब हमें ताजा दूध नहीं मिलेगा।

गुरु बोले कि हमें हर हाल में एक समान ही रहना चाहिए। जब गाय मिली तब हम प्रसन्न नहीं हुए और जब चली गए तब भी हम दुखी नहीं हुए। यही सुखी जीवन का मूल मंत्र है। 

Lata

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