महाभारत: पढ़ें, भीम के ताकतवर और शक्तिमान बनने की कथा

Monday, Jun 08, 2020 - 11:46 AM (IST)

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Mahabharata: महाभारत काल के समय में बेजोड़ और बेमिसाल योद्धा महाबली भीम के बल और पौरुष में तुलना करने वाला उस समय कोई नहीं था। इनका जन्म वायु देव के अंश से हुआ था। इनके जन्म के समय यह आकाशवाणी हुई थी कि यह कुमार बलवानों में सर्वश्रेष्ठ होगा। वस्तुत: भीमसेन शारीरिक बल में अपने युग के सबसे बड़े योद्धा थे। बचपन में खेल-खेल में वह धृतराष्ट्र के पुत्रों को बार-बार पराजित कर दिया करते थे। इस कारण दुर्योधन इनसे विशेष जलन रखता था। एक दिन दुर्योधन जलक्रीड़ा के बहाने पांडवों को गंगा तट पर ले गया। वहां उसने भीम को मार डालने के उद्देश्य से उनके भोजन में कालकूट विष मिला कर खिला दिया। विष के प्रभाव से अचेत हो जाने पर दुर्योधन ने उन्हें लताओं से बांधकर गंगा जी में डाल दिया। जल में डूब कर बेहोशी की दशा में ही भीमसेन नागलोक पहुंच गए। वहां नागों के डंसने से काल कूट का प्रभाव समाप्त हो गया और भीमसेन होश में आ गए और उन्होंने सर्पों को मारना शुरू कर दिया। इस पर जब सर्पों ने उनकी शिकायत नागराज वासुकि से की, तब नागराज वासुकि के साथ आर्यक भी भीम को देखने के लिए आए। आर्यक कुंती के पिता शूरसेन के नाना थे। अपने दौहित्र के दौहित्र भीमसेन को पहचान कर उन्हें विशेष प्रसन्नता हुई।

भीमसेन को उन्होंने वहां के कुंडों का अमृत रस पिला कर दस हजार हाथियों का बल प्रदान कर दिया। महाबलवान एवं अद्भुत पराक्रमी भीमसेन अपनी माता और भाइयों के बहुत काम आते थे। वारणावत के लाक्षागृह से निकलने पर जब इनकी हिडिम्ब राक्षस से मुठभेड़ हुई तो इन्होंने खेल ही खेल में उस पराक्रमी राक्षस का वध कर डाला और उसके भय से अपने परिवार की रक्षा की।

महाबलवान भीमसेन की यह विशेषता थी कि ये अन्याय होते देख कर उसका प्रतिकार करने के लिए तुरंत तैयार हो जाते थे। अपने प्राणों को खतरे में डाल कर दूसरों को कष्ट से मुक्ति दिलाना इनका सहज स्वभाव था। दस हजार हाथियों का बल रखने पर भी वह किसी के प्रति अत्याचार नहीं करते थे। अपनी माता तथा बड़े भाई महाराज युधिष्ठिर के वह अत्यंत ही आज्ञाकारी थे। एकचक्रा नगरी में माता कुंती के आदेश से अत्याचारी बकासुर का वध करके इन्होंने समाज को उसके भय से मुक्ति दिलाई। वीरता की तो वह प्रतिमूर्ति थे। भगवान श्री कृष्ण के साथ जाकर इन्होंने प्रबल पराक्रमी जरासंध का मल्लयुद्ध में वध किया।

द्रौपदी के चीरहरण के प्रसंग में दुशासन के दुष्कृत्य को देख कर इन्होंने क्रोध में आकर सभी कौरवों को युद्ध में मार डालने तथा दुशासन को मार कर उसका रक्तपान करने की प्रतिज्ञा कर डाली और उस प्रण का निर्वाह भी किया। भीमसेन अद्भुत योद्धा होने के साथ-साथ नीति शास्त्र के भी अच्छे ज्ञाता थे। उनकी नीतिज्ञता का पता उस समय चलता है जब भगवान श्रीकृष्ण संधि दूत बनकर कौरव सभा की ओर प्रस्थान कर रहे थे। उस समय भीमसेन ने कहा ‘‘मधुसूदन! कौरवों के बीच में आप ऐसी बात करें जिससे शांति स्थापित हो जाए। दुर्योधन दुष्ट, नीच और विपरीत बुद्धि है। वह मर जाएगा पर झुकना स्वीकार नहीं करेगा। वहां आपका कथन धर्म-अर्थ से युक्त, कल्याणकारी और प्रिय होना चाहिए।’’

धृतराष्ट्र ने भीम की वीरता का वर्णन करते हुए कहा कि ‘‘महाबाहु भीम इंद्र के समान तेजस्वी हैं। मैं अपनी सेना में युद्ध में उनका सामना करने वाला किसी को भी नहीं देखता। वह अस्त्र विद्या में द्रोण के समान, वेग में वायु के समान और क्रोध में महेश्वर के तुल्य हैं।’’

धृतराष्ट्र का यह कथन बिलकुल सत्य है। भीमसेन महाभारत के अद्वितीय योद्धा थे। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन किया। अंत में दुर्योधन को गदा युद्ध में परास्त करके इन्होंने पांडवों के लिए विजयश्री प्राप्त की।


 

Niyati Bhandari

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