Mahabharat: इस पाठ से माथे पर लिखे विधाता के लेख भी बदल जाते हैं

Monday, May 04, 2020 - 06:32 AM (IST)

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Mahabharat: प्रभु से प्रतिदिन प्रार्थना करो कि मेरी मृत्यु के समय अवश्य आना। शरीर ठीक हो तो परमात्मा ध्यान जप हो सकता है। अंतकाल में कष्ट से देहानुसंधान होता है जिसमें परमात्मा का ध्यान करना कठिन है। भीष्म श्रीकृष्ण की स्तुति करते हैं-नाथ! कृपा करें। जैसे खड़े हैं वैसे ही रहें।

स देवदेवो भगवान प्रतीक्षता कलेवर यावदिद हितोम्यहम्।

श्रीकृष्ण सोचते हैं कि इन्होंने मुझे बैठने को भी नहीं कहा। पुंडलीक की सेवा याद आती है। तुकाराम ने प्रेम से एक बार पुंडलीक को उलाहना दिया था कि मेरे विट्ठलनाथ जब द्वार पर आए तो आपने उनका सम्मान नहीं किया। मेरे प्रभु को आसन भी नहीं दिया।

प्रतिदिन प्रभु से प्रार्थना करो अपनी मृत्यु सुधारने के लिए। शरीर में जब तक शक्ति है खूब भक्ति करो और प्रभु को मनाओ। श्रीकृष्ण कहते हैं-दादा जी! इन धर्मराज को लगता है कि इन्हीं ने सबको मारा है। इनके कारण सबका सर्वनाश हो गया। इन्हें शांति मिले, ऐसा उपदेश आप करें।



श्री भीष्म पितामह कहते हैं- रुकिए! धर्मराज की शंका का निवारण मैं बाद में करूंगा। मेरा जीवन निष्पाप है, मेरा मन पवित्र है, मेरा तन भी पवित्र है। मेरी इंद्रियां भी शुद्ध हैं। मैं यह बात उनसे कर रहा हूं जो सबकी बात जानते हैं। मैंने जब पाप किया ही नहीं, तब फिर मुझे यह दंड क्यों मिल रहा है, मुझे बाण शय्या पर क्यों सोना पड़ा? मुझे अतिशय वेदना क्यों होती है।  मैं निष्पाप हूं। स्मरण नहीं आ रहा है कि मैंने कौन-सा पाप किया है?

श्रीकृष्ण जी कहते हैं, ‘‘दादा जी! आप भूल गए होंगे किंतु मैं तो नहीं भूला हूं। मैं ईश्वर हूं। मुझे तो सब कुछ स्मरण रखना ही पड़ता है। आप स्मरण करें, एक बार जब आप सभा में बैठे थे, दु:शासन वहां द्रौपदी को ले गया था।  आप उस समय वहीं थे। द्रौपदी ने कहा था कि जुए में सब कुछ हारा हुआ पति अपनी पत्नी को दाव पर नहीं लगा सकता। दुर्योधन ने कहा था कि अब द्रौपदी दासी बन गई है, उसे निर्वस्त्र करो। तो उस समय द्रौपदी ने कहा था कि हारे हुए पति को अपनी पत्नी को दाव पर लगाने का अधिकार नहीं है। आप न्याय करें कि मेरी स्थिति क्या है?



उस समय आपने कहा था कि दुर्योधन का अन्न ग्रहण करने से मेरी बुद्धि कुण्ठित हो गई है और आप चुप रह गए। ऐसा घोर पाप सभा में हो रहा था और आप उसे देखते रहे। यह आप जैसे ज्ञानी को शोभा नहीं देता था। द्रौपदी का अपमान आप सभागृह में देखते रहे। द्रौपदी को तो आशा थी कि जब आप जैसे ज्ञानी सभा में हैं तो वे न्याय करेंगे ही। आपने उस समय दुविधा में रहकर अन्याय को नहीं रोका, अत: निराश होकर द्रौपदी ने मुझे पुकारा : हे कृष्ण द्वारिकावासिन क्वासि यादवनंदन। कौरवे : परिभूता मां कि न जानासि केशव।।’’

द्रौपदी की पुकार सुनकर मैं गुप्त रूप से वहां आ पहुंचा। मैंने सब कुछ देखा, दु:शासन द्रौपदी की साड़ी खींच रहा था और आप केवल बैठे हुए देख रहे थे। सभा में हो रहे अन्याय को आपने चुपचाप होने दिया। इसी पाप का दंड आपको मिल रहा है।


भीष्म पितामह ने नमन  किया। उन्होंने फिर धर्मराज को उपदेश दिया। स्त्री धर्म, आपद्धर्म, राजधर्म, मोक्षधर्म, परमधर्म आदि प्रसंग महाभारत के शांति पर्व में आए हैं। युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से पूछा, ‘‘सभी धर्मों में से आप किस धर्म को श्रेष्ठ समझते हैं? किसका पालन करने से जीवन जन्म-मरण, रूपी सांसारिक बंधन से मुक्त हो जाता है?’’

पितामह ने कहा, ‘‘स्थावर, जंगम, रूप संसार के स्वामी, ब्रह्मादि देवों के देव, देशकाल और वस्तु से अपरिच्छिन्न, क्षर-अक्षर से श्रेष्ठ पुरुषोत्तम के सहस्त्रनामों का निरंतर तत्परता से पाठ, स्मरण और गुण संकीर्तन करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है।’’

‘विष्णु सहस्रनाम’ का पाठ करना परम धर्म है। ‘शिवमहिम्न स्तोत्र’ और ‘विष्णु सहस्रनाम’ का पाठ प्रतिदिन करें।

शिवजी की स्तुति करने से ज्ञान मिलता है, ज्ञान से शक्ति दृढ़ होती है। विष्णु भगवान का पाठ करने से पाप जल जाता है। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से ललाट पर लिखे हुए विधाता के लेख भी बदल जाते हैं। वह जीवन जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है।

भगवान शंकराचार्य को विष्णु सहस्रनाम का पठन बहुत प्रिय था। उन्होंने सबसे पहले ‘विष्णु सहस्रनाम’ पर ही भाष्य लिखा है। उनका अंतिम ग्रंथ है ‘ब्रह्मसूत्र का भाग्य’ और फिर उन्होंने कलम छोड़ दी। ‘विष्णु सहस्रनाम’ का पाठ प्रतिदिन दो बार करो।

12 वर्ष तक ऐसा करने से फल अवश्य मिलेगा। एक बार रात को सोने से पहले पाठ करो। इसमें दिव्यशक्ति है।  ललाट पर लिखे गए लेखों को मिटाने और बदलने की शक्ति इसमें है। गरीब आदमी विष्णुयाग कैसे  कर सकता है किंतु वह विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ 15 हजार बार करे तो उसे एक विष्णुयाग का फल मिलता है। भोजन की तरह भजन का भी नियम होना चाहिए। बारह वर्ष तक नियमपूर्वक सत्कर्म करो। फिर अनुभव होगा। चाहे कोई भी काम हो भगवान का भजन नियमित करो।

 

 

Niyati Bhandari

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