Maha Navami: नवरात्रि के आखिरी दिन क्यों मनाई जाती है महानवमी, जानिए महत्व

Friday, Oct 20, 2023 - 08:22 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Happy Maha Navami 2023: हिंदू धर्म और हमारे शास्त्रों में नवरात्रि का विशेष महत्व है और मां के भक्तों को बड़ी शिद्दत के साथ नवरात्रि का इंतजार रहता है। वैसे तो साल में 4 बार नवरात्रि पर्व आते हैं। जिनमें दो गुप्त नवरात्रि और दो प्रत्यक्ष नवरात्रि होती हैं लेकिन शारदीय नवरात्रि की हमारे शास्त्रों में विशेष महत्ता बताई गई है। इन 9 दिनों के दौरान देवी दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्रि के दौरान महाअष्टमी के साथ-साथ महानवमी तिथि का विशेष महत्व माना जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानवमी कहा जाता है और महानवमी को मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की आराधना की जाती है। इस बार महानवमी तिथि 23 अक्टूबर 2023 को मनाई जाएगी।

महानवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है और ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त पूरे श्रद्धा भाव से देवी दुर्गा के इस रूप की उपासना करता हैं, वह सारी सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। हिंदू धर्म में मां सिद्धिदात्री को भय और रोग से मुक्त करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि मां सिद्धिदात्री की कृपा जिस व्यक्ति पर होती है, उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं।

मान्यता है कि एक महिषासुर नाम का राक्षस था, जिसने चारों तरफ हाहाकार मचा रखा था। उसके भय से सभी देवता परेशान थे। उसके वध के लिए देवी आदिशक्ति ने दुर्गा का रूप धारण किया और 8 दिनों तक महिषासुर राक्षस से युद्ध करने के बाद 9वें दिन उसको मार गिराया। जिस दिन मां ने इस अत्याचारी राक्षस का वध किया, उस दिन को महानवमी के नाम से जाना जाने लगा। महानवमी के दिन महास्नान और षोडशोपचार पूजा करने का रिवाज है। ये पूजा अष्टमी की शाम ढलने के बाद की जाती है। दुर्गा बलिदान की पूजा नवमी के दिन सुबह की जाती है। नवमी के दिन हवन करना जरूरी माना जाता है क्योंकि इस दिन नवरात्रि का समापन हो जाता है। मां की विदाई कर दी जाती है।

महानवमी को लोग नौ कन्याओं को भोजन कराकर अपना व्रत खोलते हैं। मां की इस रूप में उपासना करने से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। जो लोग अष्टमी के दिन कन्या पूजन नहीं कर पाए हैं, उन्हें नवमी के दिन कन्या पूजन करना चाहिए। कन्या पूजन के लिए 2 साल से 10 साल तक की कन्याओं को और एक बालक को आमंत्रित करें।

इसके बाद सभी कन्याओं के पैर खुद अपने हाथों से धोएं। उनके माथे पर कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं। इसके बाद कन्याओं के हाथ में मूली या कलावा बांध दें। एक थाली में घी का दीपक जलाएं और सभी कन्याओं की आरती उतारें। आरती करने के बाद सभी कन्याओं को भोग लगाएं और खाने में पूरी, चना और हलवा जरूर खिलाएं। भोजन खिलाने के बाद कन्याओं को अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूर भेज दें और आखिर में कन्याओं के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद जरूर लें और उन्हें सम्मान सहित विदा करें।

गुरमीत बेदी
 9418033344

 

 

Niyati Bhandari

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