महाकुंभ हमारी प्राचीन संस्कृति व अटूट श्रद्धा का प्रतीक: देवांश भास्कर
punjabkesari.in Friday, Feb 07, 2025 - 01:24 PM (IST)
![](https://static.punjabkesari.in/multimedia/2025_2image_13_24_491344388mahakumbh2025.jpg)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Maha Kumbh: महाकुंभ हमारी प्राचीन धरोहर है जो की चिर चिरन्तर काल से चलती आ रही हमारी संस्कृति का प्रतीक है। विश्व का यह सबसे बड़ा पर्व जिसका आध्यात्मिक जगत के हर व्यक्ति को इंतज़ार रहता है वहीं दूसरी तरफ़ अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू करने के लिए सब तरह के आध्यात्मिक रंगों को अनुभव करने का ये ख़ास मौक़ा है। महाकुंभ क्षेत्र में योगी सरकार द्वारा किए गए प्रबंध प्रशंसनीय योग हैं। जब सरकारें हमारी संस्कृति के प्रति लोगों को जागरुक करती हैं तब हर वर्ग के लोग जुड़ने लगते हैं यह महाकुंभ में पांच दिन बिताने पर मैंने अनुभव की। युवा वर्ग जिस उत्साह के साथ महाकुंभ जा रहा है ये इस बात का सूचक है कि हमारा युवा हमारी सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व कर रहा है। कुंभ में समाज का वो वर्ग जो अपनी कम्फर्ट को छोड़ना नहीं चाहता वह भी मोटरसाइकिल पे घूमता व टैंट में सोते हुए मिला।
मेला प्रबंधन में पुलिस की बहुत सराहनीय भूमिका है मैंने देखा पुलिस को इस तरह से प्रशिक्षित किया गया की वह किसी से भी गुस्से या ऊंची आवाज़ में बात करते दिखाई नहीं दिए। नदी का तट ही मेला क्षेत्र है इसलिए वहां पक्की सड़कों का बनाना तो पैसे की बर्बादी व नदी के तल को खराब करना होगा ऐसे में सरकार ने लोहे की अस्थाई सड़कों का निर्माण किया है व धूल ना उड़े उसके लिए समय समय पे पानी का छिड़काव होता रहता है। घाट पे स्नान कर रहे लोगों को जान माल की हानि से बचाने के लिए रैपिड वाटर फ़ोर्स तैनात है। सफ़ाई का ख़ास ख्याल रखा गया है घाटों पे पूजा करते श्रद्धालुओं की जो पूजा सामग्री जैसे की फूल या पत्ते की कटोरियां उधर रह जाती हैं वह कुछ देर बाद वहाँ से साफ़ कर दी जाती हैं व समय समय बाद कूड़ेदान भी खाली किए जाते हैं। घाट पे महिलाओं के लिए कपड़े बदलने के अस्थायी कमरे मौजूद हैं।
लाखों करोड़ों लोग जो की अलग अलग जगह से एक ही दिन एक ही स्थान पर आते हैं अक्सर मेलों में ऐसी भीड़ अजीब सा बर्ताव करती है लेकिन तीर्थ यात्रा की भावना से आए श्रद्धालु किसी दूसरे से गलती होने पे भी मुस्कुरा के माफ करते नज़र आए। जहाँ इतने लोग हों तो वहां विज्ञापन देने के लिए जहां अलग अलग कंपनियों ने बड़े ही रोचक तरीक़े से प्रदर्शन किया जहां हाजमोला खाने के स्थलों पे फ्री पाचन की गोलियां बांटता नजर आया तो कैंपा आराम स्थल बना के लोगों के लिए सहायक हुआ तो वहीं श्री श्री तत्त्व बिस्किट सोया बड़ी व देसी घी वितरित करते हुए पाया गया। तो वहीं विभिन्न सरकारों की तरफ से भी कसर नहीं छोड़ी गई। बहुत सी राज्य सरकारों भी अपने क्षेत्र की कला पर्यटन के स्थलों व भोजन को प्रदर्शित किया हुआ है। जिसमे सबसे बेहतरीन उत्तर प्रदेश व गुजरात था जबकि हमारे पंजाब की प्रदर्शनी देखने को नहीं मिली। मुझे लगता है ऐसे समय में अपने राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठके सरकारों को काम करना चाहिए।
रहने व खाने की कोई कमी नहीं है। बहुत सी निजी कंपनियों के ऑनलाइन पोर्टल के जरिये आप अपनी जरूरत अनुसार जाने से पहले अपनी बुकिंग कर सकते हैं अन्यथा वहां पहुंचने पर भी बहुत से सरकारी व गैरसरकारी स्थायी आवास भी मौजूद हैं। कुंभ क्षेत्र में बहुत अधिक पैदल नहीं चलना पड़ता। पैदल उनको अधिक चलना पड़ता है जो लोग बिना किसी जानकारी के उधर जाते हैं व भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं। सरकार द्वारा शहर में चलने के लिए फ्री बैटरी रिक्शा की सहूलियत है तो मेला क्षेत्र में भी ओला व सरकार द्वारा ग्रीन कुंभ के तहत बैटरी कार मिल जाती है। अगर आप पैसा खर्च सकते हैं तो मेला क्षेत्र में ओला व रैपिडो बाइक की सुविधा दी गई है जो संगम से एक किलोमीटर दूर आपको छोड़ देते हैं। क्यूंकि आप महाकुंभ जा रहे हैं तो बहुत ज़्यादा अपेक्षाओं के साथ मत जायें जो लोग अधिक कम्फर्ट का सोच के जाते हैं उन्हें परेशानी हो सकती है।
पंजाब के मुकाबले दिन में वहां गर्मी अधिक है तो यात्री दिन के लिए आधी बाजू के कपड़े और सुबह शाम के लिए गर्म कपड़े लेके जायें। संगम घाट में स्नान के इलावा आप प्रसिद्ध नागवासुकी मंदिर, बड़े हनुमान मंदिर तिरुपति मंदिर, पंचायती अखाड़ों मुख्यत जूना अखाड़ा, नागा साधु अखाड़ा में जा सकते हैं व अनुभव कर सकते हैं की कैसे हठ योग से उन्होंने अपनी इन्द्रियों को बस में किया हुआ है। तो मेरे इस सुंदर अनुभव से प्रेरित होके आप सब को कहूंगा जो जा सकते हैं वह जरूर जायें ये मौका फिर 12 साल बाद आयेगा और जो नहीं जा सकते वह अपने घर में ही तीर्थ प्रयाग को याद करते हुए स्नान करें। उस जगह के माहौल को लफ़्ज़ों या चित्रों के जरिये बता पाना असंभव है उस माहौल को वहां जा के ही जिया जा सकता है। हर-हर महादेव।